- नीतीश को NDA में अनिश्चित समर्थन, तो महागठबंधन में तेजस्वी को कांग्रेस की चुनौती – राजनीतिक असमंजस गहराया
- बिहार चुनाव 2025 – मुकाबला मुद्दों पर होगा या चेहरों पर?
पटना : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, राज्य की राजनीति में एक बड़ा सवाल चर्चा में है—चुनाव जीते तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा? यह सवाल सिर्फ विपक्षी महागठबंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि सत्ताधारी NDA गठबंधन भी इससे जूझता दिख रहा है। NDA की ओर से यह जरूर कहा जा रहा है कि चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है, लेकिन भाजपा इस सवाल का स्पष्ट जवाब देने से बच रही है कि जीत के बाद मुख्यमंत्री कौन होगा? भाजपा नेताओं का कहना है कि फिलहाल पूरा ध्यान सरकार दोबारा बनाने पर है, लेकिन भाजपा सत्ता की कुर्सी को लेकर चुप्पी साधे हुए है। दूसरी तरफ पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी से लेकर केंद्रीय मंत्री अमित शाह तक कई नेताओं के बयानों से इस बात के संकेत मिले हैं कि भाजपा चुनाव बाद नेतृत्व में बदलाव के विकल्प को खुला रखे हुए है।
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NDA में नीतीश की भूमिका सीमित करने की तैयारी?
उधर महागठबंधन में मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर मतभेद ज्यादा गंभीर हैं। राजद की ओर से लगातार दबाव बनाया जा रहा है कि तेजस्वी यादव को सीएम फेस घोषित किया जाए, लेकिन कांग्रेस और वामदलों की ओर से इस पर सहमति नहीं बन पाई है। महागठबंधन की हालिया बैठक में यह दावा हुआ था कि मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर सहमति बन गई है, लेकिन आधिकारिक घोषणा अब तक नहीं हुई है। कांग्रेस का साफ कहना है कि चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा और 2020 की तरह तेजस्वी को चेहरा घोषित करने की गलती दोहराई नहीं जाएगी। कांग्रेस हाईकमान के कई वरिष्ठ नेताओं—राहुल गांधी, के.सी. वेणुगोपाल और बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु—ने संकेत दिए हैं कि तेजस्वी के नेतृत्व पर भरोसा करने से पहले गठबंधन को रणनीतिक रूप से सोचना होगा।
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क्या महागठबंधन में टूट की शुरुआत तेजस्वी-बनाम-कांग्रेस टकराव से होगी?
महागठबंधन की चुनौतियाँ तेजस्वी यादव को IRCTC भ्रष्टाचार मामले की चार्जशीट के बाद और बढ़ गई हैं। इसी केस में कोर्ट द्वारा आरोप तय होने के बाद कांग्रेस तेजस्वी को चेहरा घोषित करने से और भी हिचकिचा रही है। कांग्रेस का तर्क है कि तेजस्वी को आगे करने से NDA भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर-शोर से उठाएगा और विपक्ष की नैतिक छवि कमजोर पड़ेगी। दूसरी ओर राजद का मानना है कि बिना चेहरा घोषित किए गठबंधन चुनाव में गति नहीं पकड़ पाएगा और कार्यकर्ताओं का मनोबल कमजोर होगा। राजद यह भी तर्क दे रही है कि तेजस्वी यादव पिछले चुनाव में सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे थे और मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण उनके नेतृत्व में ही मजबूत रहता है।
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क्या तेजस्वी पर लगे आरोप महागठबंधन के लिए बड़ी बाधा बनेंगे?
इस बीच गठबंधन के अंदर सीट वितरण को लेकर भी गहरी खींचतान चल रही है। राजद अधिकतम सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है और खुद को गठबंधन का बड़ा भाई मान रही है। वहीं कांग्रेस इस बार पिछली बार से ज्यादा सीटें मांग रही है और जीत योग्य सीटों पर दावा कर रही है। वामदलों ने 2020 में 16 में से 12 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन किया था, इसलिए वे भी इस बार ज्यादा सीटों की मांग पर अड़े हैं। वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने तो डिप्टी सीएम पद की मांग तक रख दी है। स्थिति यह हो गई है कि महागठबंधन का सीट बंटवारा अब तक फाइनल नहीं हो पाया है। इतना ही नहीं, कई सीटों पर टकराव खुलकर सामने आ चुका है, जैसे—वैशाली, लालगंज और कुटुंबा में राजद और कांग्रेस दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं।
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सीट बंटवारे में फंसा महागठबंधन, क्या होगा आगे?
इन राजनीतिक उठापटक के बीच तेजस्वी यादव खुद को अब ‘ब्रांड तेजस्वी’ के रूप में पेश कर रहे हैं और उन्होंने साफ कहा है कि “बिहार में बदलाव तो तेजस्वी ही लाएगा।” उन्होंने खुद को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा मानना शुरू कर दिया है, भले ही कांग्रेस अब तक आधिकारिक सहमति न दे रही हो। तेजस्वी लगातार जनसभाओं में नीतीश कुमार और भाजपा पर सीधे हमले कर रहे हैं। वहीं NDA इस स्थिति पर नजर रखे हुए है और महागठबंधन की फूट को अपने फायदे में बदलने की रणनीति पर काम कर रहा है। कुल मिलाकर बिहार में इस बार के चुनाव का सबसे बड़ा सवाल यही है—मुख्यमंत्री कौन? न NDA इस पर स्पष्ट है और न ही महागठबंधन। जनता भी इंतजार में है कि आखिर मुख्य मुकाबले में दावेदार कौन होगा और किसके नेतृत्व में बिहार आगे बढ़ेगा।