
चांडिल: चांडिल अनुमंडल स्थित टाटा-रांची मुख्य राज्य मार्ग पर स्थित चिलगु जुड़िया के सामने, 11 मार्च को पारंपरिक आदिवासी पर्व “बाहा बोंगा” का आयोजन हुआ. यह पर्व प्रकृति की पूजा और आभार व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो आदिवासी समाज के बीच प्राचीन समय से मनाया जा रहा है. इस पर्व के दौरान मारांग बुरु, जाहेर आयो, मोड़ें क और बुरू बोंगा की पूजा साल और महुआ के फूलों से की जाती है.
पर्व का आयोजन और कार्यक्रम
इस वर्ष, बाहा बोंगा पर्व का आयोजन सरायकेला जिले के चांडिल प्रखंड स्थित शहरबेड़ा में हुआ. कार्यक्रम का शुभारंभ तीन बजे हुआ, जो रात्रि 8 बजे तक चलता रहा. इस अवसर पर दूर-दराज से सैकड़ों ग्रामवासी, विशेषकर महिलाएं, शामिल हुईं.
समारोह की विशेषताएँ
कार्यक्रम में दिसम नायके का स्वागत, पारंपरिक नृत्य, संगीत और पूजा-अर्चना का आयोजन किया गया. महिलाएं पूजा करने के बाद साल के फूलों को अपने आंचल में ग्रहण करतीं और माथे पर लगातीं. पारंपरिक वस्त्र पहनकर आदिवासी महिला-पुरुष मंडर, ढोल, नागड़ा की धुन पर नृत्य करते नजर आए. सभी अतिथियों का पारंपरिक वस्त्र पहनाकर स्वागत किया गया.
आध्यात्मिकता और सामाजिक संदेश
बाबूलाल सोरेन ने बताया कि बाहा पर्व संबलता, सामाजिक एकता और संगठन की भावना को प्रकट करता है. यह पर्व आदिवासी समाज की संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है. हर वर्ष की तरह इस बार भी चांडिल, नीमडीह, बड़ाम, पटमदा सहित 58 गांवों के लोग इस पर्व में शामिल हुए.
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