
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को भारतीय सेना पर की गई टिप्पणी को लेकर कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने पूछा— “अगर आप नेता प्रतिपक्ष हैं, तो संसद में बोलिए, सोशल मीडिया पर क्यों?”
यह टिप्पणी जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने की, जब राहुल गांधी ने लखनऊ की निचली अदालत से जारी समन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
कोर्ट का सवाल – आपके पास कोई पुख्ता सबूत है?
जस्टिस दीपंकर ने सीधे सवाल किया— “आपको कैसे पता चला कि चीन ने 2000 वर्ग किलोमीटर भारतीय जमीन पर कब्जा कर लिया?
आपके पास कोई सरकारी दस्तावेज है या सिर्फ आरोप हैं?” कोर्ट ने साफ कहा कि संविधान में मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि कोई भी बिना प्रमाण के देश की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर बयानबाज़ी करे।
“विपक्ष में होने का मतलब यह नहीं कि कुछ भी बोलें”
जब राहुल गांधी की ओर से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि विपक्ष का काम ही सवाल उठाना है, कोर्ट ने कहा— “आप विपक्ष में हैं, इसका मतलब यह नहीं कि कुछ भी कह सकते हैं। आज़ादी की भी एक सीमा होती है, खासकर जब बात सेना और देश की सुरक्षा की हो।”
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि मामले में चल रही कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगाई है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और याचिकाकर्ता उदय शंकर श्रीवास्तव को नोटिस भेजते हुए तीन हफ्ते में जवाब मांगा है।
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी राहुल गांधी की याचिका खारिज करते हुए कहा था— “बोलने की आजादी असीमित नहीं है, और सेना के खिलाफ किसी भी तरह की टिप्पणी सहन नहीं की जा सकती।”
विवाद का कारण बना था राहुल का 2022 का बयान
यह मामला 16 दिसंबर 2022 का है, जब भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने कहा था— “अरुणाचल में चीनी सैनिक भारतीय जवानों को पीट रहे हैं।” उनके इस बयान को लेकर सीमा सड़क संगठन के पूर्व निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव ने लखनऊ की अदालत में मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी।
अगली सुनवाई तीन हफ्ते बाद
अब यह मामला तीन हफ्तों बाद फिर से सुप्रीम कोर्ट में सुना जाएगा। लेकिन कोर्ट की आज की टिप्पणी साफ कर गई कि: “नेताओं को राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों पर बयान देने से पहले सोच-समझकर बोलना चाहिए।”
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