
सरायकेला: कल देर रात सरायकेला बिरसा मुंडा स्टेडियम में छऊ कलाकारों की एक आपात बैठक आयोजित की गई. अध्यक्षता कर रहे गुरु बृजेंद्र कुमार पटनायक के नेतृत्व में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि पद्मश्री सम्मानित शशधर आचार्य द्वारा समाचार पत्रों में छऊ कलाकारों की दक्षता को लेकर दिया गया गैर जिम्मेदाराना बयान अत्यंत पीड़ादायक है. उन्होंने कलाकारों को “भस्मासुर” जैसे शब्दों से संबोधित कर संपूर्ण समुदाय को आहत किया है.
पुतला दहन कार्यक्रम को किया गया स्थगित
बैठक में गुस्से और पीड़ा के भाव स्पष्ट रूप से देखे गए. कलाकारों ने घोषणा की कि यदि 24 घंटे के भीतर आचार्य अपना बयान वापस नहीं लेते हैं, तो उनके पुतले का दहन किया जाएगा. हालांकि, पद्मश्री सम्मान की गरिमा को ध्यान में रखते हुए इस निर्णय को स्थगित कर दिया गया. फिर भी, व्यक्तिगत रूप से उनके द्वारा दिए जाने वाले भ्रामक बयानों और गतिविधियों का विरोध भविष्य में भी जारी रहेगा.
कलाकारों की आस्था और परंपरा से खिलवाड़ का आरोप
वरिष्ठ कलाकार भोला महांती ने स्पष्ट किया कि शशधर आचार्य को इस वर्ष चैत्र पर्व की आयोजक समितियों में सर्वोच्च स्थान दिया गया था. निर्णायक मंडलों में भी उनका नाम सबसे ऊपर रखा गया. 13 अप्रैल को वे सरायकेला में उपस्थित रहते हुए भी, आमंत्रण और प्रशासनिक अनुरोध के बावजूद, मंच पर उपस्थित नहीं हुए. बावजूद इसके, मंच से यह घोषणा हुई कि उन्हें उनके आवास पर जाकर सम्मानित किया जाएगा और वैसा ही हुआ.
“नृत्य का स्तर गिराने का आरोप निराधार”
गुरु तरुण भोल ने कहा कि शशधर आचार्य द्वारा यह कहना कि उन्होंने 50% कलाकारों को प्रशिक्षित किया है, एकपक्षीय और मिथ्या है. उन्होंने बताया कि संगीत नाटक अकादमी द्वारा संचालित प्रोजेक्ट में देश के मूर्धन्य कलाकारों ने योगदान दिया था. उक्त प्रोजेक्ट को निजी संस्था में स्थानांतरित कर आचार्य द्वारा उसे हथियाने का प्रयास किया गया, जिससे धीरे-धीरे कलाकारों का शोषण होने लगा और वे एक-एक कर उनसे दूर हो गए.
“राजकीय कलाकेंद्र को छोड़कर भागे”
कलाकारों ने आरोप लगाया कि जब छऊ नृत्य केंद्र को आचार्य की आवश्यकता थी, तब उन्होंने उसे छोड़ दिया. आज वही व्यक्ति छऊ को बढ़ाने की बात कर रहे हैं. यदि उनमें वाकई कला के प्रति प्रेम होता, तो वे केंद्र को व्यवस्थित रूप से संचालित करते.
शास्त्रार्थ की चुनौती या अहंकार की गूंज?
शशधर आचार्य द्वारा शास्त्रार्थ की खुली चुनौती को कलाकारों ने ‘घमंड की अभिव्यक्ति’ बताया है. उन्होंने सवाल उठाया कि जब किसी ने शास्त्रार्थ की बात ही नहीं की, तो यह चुनौती क्यों? कलाकारों ने कहा कि उन्हें “मैं” की भाषा छोड़कर “हम” की बात करनी चाहिए.
तुलना से सामने आएगी असलियत
कलाकारों ने सुझाव दिया कि यदि आचार्य के दल द्वारा प्रस्तुत नृत्यों की तुलना पद्मश्री राजकुमार स्वर्गीय सुधेंद्र नारायण सिंह देव और पद्मश्री केदारनाथ साहू जी के नृत्य विडियो से की जाए, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि किसने सरायकेला छऊ की मौलिकता के साथ छेड़छाड़ की है.
“सत्तर लाख” की रट और वास्तविकता
कलाकारों ने कहा कि आचार्य बार-बार ₹70 लाख की बात कर रहे हैं, जबकि उनका उसमें कोई योगदान नहीं रहा. पिछले 35 वर्षों से उन्होंने राजकीय कलाकेंद्र की ओर रुख तक नहीं किया.
बैठक में पहली बार सभी कलाकार एक मंच पर दिखे. इस एकजुटता को कलाकारों ने सकारात्मक संकेत बताया. सभी ने एक स्वर में कहा कि यदि शशधर आचार्य वास्तव में कला और कलाकारों का भला चाहते हैं, तो उन्हें अनावश्यक ‘ड्रामा’ बंद कर, सहयोग की भावना से कार्य करना चाहिए.
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