- विशेषज्ञों ने बच्चों के अधिकार, सुरक्षा और शिक्षा पर जताई गंभीर चिंता
- पूर्व न्यायाधीश एस.एन. पाठक बोले—“बच्चों की नींव मजबूत हो, तभी राष्ट्र मजबूत होगा”
जमशेदपुर : जमशेदपुर में आयोजित चतुर्थ बाल मेले के दौरान बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम पर एक महत्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें विशेषज्ञों, शिक्षाविदों, समाजसेवियों और वकीलों ने बच्चों के अधिकार, शिक्षा और सुरक्षा से जुड़ी अहम चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की। कार्यक्रम में झारखंड उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस.एन. पाठक ने समाज में नैतिक मूल्यों की गिरती स्थिति पर चिंता व्यक्त की और कहा कि बच्चों की नींव मजबूत करने के लिए नैतिक शिक्षा अनिवार्य है। उन्होंने सुझाव दिया कि मोरल साइंस में 75 प्रतिशत अंक अनिवार्य कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों के अधिकार, उनके कर्तव्यों और कानूनों के बारे में जानना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। बाल श्रम पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि कानून होने के बावजूद खनन क्षेत्रों में बच्चों से काम कराया जा रहा है, जो गंभीर अपराध है और इसे तत्काल रोकने की जरूरत है।
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“बच्चों का बचपन मोबाइल में सीमित”, शिक्षा की नई चुनौतियों पर चर्चा
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चंद्रदीप पांडेय ने राइट टू एजुकेशन अधिनियम 2009 के प्रावधानों पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि आज बच्चों का बचपन मोबाइल और डिजिटल स्क्रीन तक सीमित होता जा रहा है, जिसे बदलना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का अधिकार अब मौलिक अधिकार है और राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करवाए। उन्होंने शिक्षक–छात्र अनुपात, खेल के मैदान, शौचालय, व्यावहारिक शिक्षा और योग्य शिक्षकों की बहाली जैसे महत्वपूर्ण प्रावधानों की जानकारी दी। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा व्यवस्था में भेदभाव नहीं होना चाहिए और इन्क्लूसिव एजुकेशन को बढ़ावा देना चाहिए ताकि हर बच्चा शिक्षा की मुख्यधारा में जुड़ सके।
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“कानून हैं, योजनाएँ हैं, पर हिंसा नहीं रुक रही”—विकास दोदराजका
विकास दोदराजका ने कहा कि देश में बच्चों की सुरक्षा के लिए कई सख्त कानून, योजनाएँ और आयोग सक्रिय हैं, इसके बावजूद बच्चों के विरुद्ध हिंसा के मामलों में कमी नहीं आ रही है। उन्होंने बताया कि बाल श्रम अधिनियम, पॉक्सो एक्ट, जेजे एक्ट जैसे कई प्रावधान मौजूद हैं, लेकिन आम नागरिकों को इनकी जानकारी नहीं है। नतीजतन, अपराध बढ़ते जा रहे हैं और जागरूकता का अभाव समस्या को और जटिल बनाता है। उन्होंने चिंता जताई कि नशे की प्रवृत्ति बच्चों में तेजी से फैल रही है और इसे रोकने के लिए कोई ठोस योजना दिखाई नहीं देती। हालांकि यह सकारात्मक है कि अब झारखंड में बच्चों के प्रति हिंसा को लेकर बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चल रहे हैं और पहले से छुपे रहने वाले मामले अब दर्ज हो रहे हैं।
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“कानून सुंदर हैं, पर समाज स्वीकार नहीं करता”—प्रभा जायसवाल
आदर्श सेवा संस्थान की प्रभा जायसवाल ने बाल संरक्षण से जुड़ी सामाजिक बाधाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बच्चों को समाज में अभी भी वह महत्व नहीं मिलता जिसकी वे हकदार हैं। उन्होंने कहा कि जेजे एक्ट, पॉक्सो एक्ट जैसे कानून बच्चों के हित में बने हैं, लेकिन समाज में इनकी स्वीकार्यता कम है। बाल विवाह, कुपोषण, स्लम क्षेत्रों की समस्याएँ और बच्चों के पुनर्वास की चुनौतियों पर उन्होंने गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हर बस्ती में ड्रग्स का प्रसार बच्चों को खतरनाक दिशा में ले जा रहा है और इस पर तुरंत रोक लगाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों की सुरक्षा और विकास के लिए कानून के साथ-साथ समाज का संवेदनशील होना भी जरूरी है, नहीं तो कानून प्रभावी नहीं हो पाएंगे।
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बच्चों की सुरक्षा, कानून और जागरूकता पर विशेषज्ञों ने रखा अपना पक्ष
जमशेदपुर बार एसोसिएशन के सीनियर मेंबर एडवोकेट अनिल कुमार ने कहा कि बच्चों को उनके अधिकारों और सुरक्षा से जुड़े कानूनों की जानकारी देना अत्यंत आवश्यक है। पॉक्सो एक्ट में बच्चे की पहचान गोपनीय रखने और उसे सुरक्षित माहौल प्रदान करने का स्पष्ट प्रावधान है, लेकिन समाज में अभी भी जागरूकता की कमी है। संजय मिश्रा ने कहा कि पॉक्सो एक्ट को संवेदनशीलता के साथ लागू करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि देश में 34 सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ हैं, जिनसे बच्चों को जोड़कर उनकी कई समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने जमशेदपुर को “चाइल्ड फ्रेंडली डिस्ट्रिक्ट” बनाने का संकल्प लेने की बात कही। कार्यक्रम का विषय प्रवेश राजहंस तिवारी ने कराया, मंच संचालन अधिवक्ता प्रतीक ने किया और संजीव रंजन बरियार ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।