
गुवा: गुवा एवं आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजो पर्व परंपरागत उल्लास और लोक संस्कृति के रंग में सराबोर होकर मनाया गया. ग्रामीणों ने अपने-अपने घरों में रस्सी से झूले बनाकर उन्हें फूलों और आम के पत्तों से बेहद खूबसूरत ढंग से सजाया. गांवों की गलियों और आंगनों में झूलों की चहक और बच्चों की हंसी गूंज रही थी. नुइयाँ, गंगदा, रोवाम और लिपुंगा जैसे गांवों में पेड़ों की शाखों पर लटके झूलों में बच्चों की मस्ती देखते ही बन रही थी.
घर-घर में इस अवसर पर चावल के आटे से बना पारंपरिक पीठा और तरह-तरह के पकवानों की खुशबू फैल रही थी. कुंवारी कन्याएं हाथों में मेहंदी रचा कर, नए परिधान पहनकर सजी-धजी नजर आईं. वे एक-दूसरे को रोजो पर्व की बधाई देतीं और झूले पर झूमती दिखीं. इस दृश्य ने ग्रामीण जीवन में पारंपरिक सौंदर्य का अद्भुत संयोग रचा.
चार दिवसीय पर्व का विशेष महत्व
रोजो पर्व का आयोजन चार दिनों तक चलता है:
शनिवार: पहला रोजो
रविवार: रोजो संक्रांति
सोमवार: भुदाह
मंगलवार: बासुमति स्नान
बासुमति स्नान के साथ इस पर्व का समापन होता है. लोक मान्यता है कि इसी दिन से धरती माता राजस्वला होती हैं और बरसात के आगमन का संकेत मिलता है. इसे खेती के मौसम की शुरुआत का शुभ प्रतीक माना जाता है.
रोजो पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ मानवीय संबंध को समझने और सम्मान देने का पर्व है. यह मौसम, कृषि और सांस्कृतिक चेतना के साथ-साथ सामाजिक एकता और महिलाओं की भागीदारी का भी उत्सव है.
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