
नई दिल्ली: यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि यदि उन्हें अपने देश में शांति की गारंटी मिलती है और यूक्रेन को नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) की सदस्यता मिलती है, तो वह राष्ट्रपति पद छोड़ने के लिए तैयार हैं. जेलेंस्की ने स्काई न्यूज से बातचीत करते हुए कहा, “मैं नाटो के लिए योग्य हूं और अगर मैंने नाटो सदस्यता सुनिश्चित कर ली, तो मेरा मिशन पूरा हो जाएगा.” उनका यह बयान यूक्रेन की सुरक्षा और भविष्य को लेकर महत्वपूर्ण है.
राष्ट्रपति पद से हटाना आसान नहीं
हालांकि, जेलेंस्की ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्हें पद से हटाना इतना आसान नहीं होगा. उन्होंने कहा, “सिर्फ चुनाव कराना ही काफी नहीं है, आपको मुझे भाग लेने से रोकना होगा और यह थोड़ा मुश्किल होगा.” उनका यह बयान रिपब्लिकन नेताओं द्वारा उनके इस्तीफे की मांग के बाद आया है, जिनमें सीनेटर लिंडसे ग्राहम और स्पीकर माइक जॉनसन प्रमुख हैं. ये नेताओं का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप के साथ ओवल ऑफिस में हुई तीखी नोकझोंक के बाद जेलेंस्की को अपने पद से हट जाना चाहिए.
राष्ट्रपति चुनाव पर जेलेंस्की का बयान
जेलेंस्की ने यूके लौटने से पहले पत्रकारों से बातचीत में मजाकिया अंदाज में कहा कि वह अमेरिकी रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम को यूक्रेन की नागरिकता दे सकते हैं. उन्होंने कहा, “मैं लिंडसे ग्राहम को यूक्रेन की नागरिकता दे सकता हूं और वह हमारे देश के नागरिक बन जाएंगे. फिर मैं उन्हें इस विषय पर सुनूंगा कि राष्ट्रपति कौन होना चाहिए.” इस बयान से यह स्पष्ट हुआ कि जेलेंस्की का मानना है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति का चुनाव सिर्फ यूक्रेन के भीतर होना चाहिए, न कि किसी बाहरी देश के दबाव में.
किंग चार्ल्स से मुलाकात और ब्रिटेन यात्रा
यह बैठक यूक्रेनी राष्ट्रपति की ब्रिटेन के राजा किंग चार्ल्स से मुलाकात के बाद हुई. जेलेंस्की ने इस मुलाकात के बाद पत्रकारों के साथ 90 मिनट तक चर्चा की. इससे पहले, उन्होंने लंदन में एक सुरक्षा शिखर सम्मेलन में भाग लिया, जहां यूक्रेन की सुरक्षा को लेकर कई विश्व नेताओं के साथ बातचीत हुई.
क्या यूक्रेन के राष्ट्रपति चुनाव में बाहरी दबाव असरदार हो सकता है?
जेलेंस्की के बयान के बाद यह सवाल उठता है कि क्या यूक्रेन के राष्ट्रपति चुनाव में बाहरी देशों का दबाव प्रभावी हो सकता है? क्या यूक्रेन को नाटो की सदस्यता मिलना उसकी सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा? यह सवाल न सिर्फ यूक्रेन बल्कि वैश्विक राजनीति के लिए भी अहम है.
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