
धनबाद: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी-आईएसएम), धनबाद के 45वें दीक्षांत समारोह में शिरकत की. अपने संबोधन में उन्होंने संस्थान की लगभग सौ वर्षों की गौरवशाली यात्रा को श्रद्धा के साथ रेखांकित किया.
राष्ट्रपति ने कहा कि खनन और भूविज्ञान में दक्ष मानव संसाधन तैयार करने के उद्देश्य से स्थापित यह संस्थान आज विविध शैक्षणिक और अनुसंधान क्षेत्रों में अग्रणी बन चुका है. उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि संस्थान ने एक ऐसा नवाचार-आधारित इकोसिस्टम तैयार किया है, जो लोगों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को केंद्र में रखता है.
राष्ट्रपति ने कहा कि आईआईटी-आईएसएम देश के विकास में निर्णायक भूमिका निभा रहा है. यह संस्थान न केवल उत्कृष्ट इंजीनियर और शोधकर्ता तैयार कर रहा है, बल्कि ऐसे पेशेवर भी गढ़ रहा है जो संवेदनशील, उद्देश्यपूर्ण और सामाजिक सरोकारों से जुड़े हैं. उन्होंने इसे भारत के भविष्य को आकार देने वाली प्रतिबद्धता का प्रतीक बताया.
अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने ध्यान दिलाया कि जलवायु परिवर्तन, संसाधनों की कमी, डिजिटल व्यवधान और सामाजिक असमानताएँ — ये सब विश्व को नई जटिलताओं की ओर ले जा रही हैं. ऐसे में आईआईटी-आईएसएम जैसे संस्थानों की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है. उन्होंने संस्थान से आग्रह किया कि वह टिकाऊ और अभिनव समाधानों की खोज में अग्रणी बने.
शिक्षा को व्यावहारिक और उद्योग-अनुकूल बनाने की जरूरत
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की सबसे बड़ी पूंजी उसका युवा मानव संसाधन है. तकनीकी शिक्षा और डिजिटल कौशल तक पहुंच में वृद्धि भारत को एक प्रौद्योगिकीय महाशक्ति बना रही है. लेकिन इस दिशा को और सशक्त बनाने के लिए शिक्षा को नवोन्मेष-केंद्रित, व्यावहारिक और उद्योग-अनुकूल बनाना जरूरी है. इससे युवाओं की प्रतिभा को सही दिशा मिलेगी और वे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे.
पेटेंट संस्कृति और समग्र सोच का विकास जरूरी
उन्होंने स्टार्टअप्स और अनुसंधान-आधारित शिक्षा के साथ-साथ पेटेंट संस्कृति को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता बताई. छात्रों में समग्र सोच और बहुविषयक दृष्टिकोण विकसित करने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि जटिल समस्याओं के रचनात्मक समाधान इसी से मिल सकते हैं.
अपने अंतिम संदेश में राष्ट्रपति ने छात्रों से अपील की कि वे अपने ज्ञान को केवल निजी उन्नति तक सीमित न रखें. वह ज्ञान जनकल्याण और न्यायपूर्ण भारत के निर्माण में उपयोग हो. उन्होंने हरित भारत के निर्माण की बात करते हुए कहा कि विकास प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर होना चाहिए, न कि उसके विरुद्ध.
राष्ट्रपति ने यह भी जोड़ा कि बुद्धिमत्ता के साथ सहानुभूति, नैतिकता और उत्कृष्टता का मेल ही एक बेहतर विश्व की आधारशिला रख सकता है. क्योंकि नवाचार तभी सार्थक होता है, जब उसमें करुणा हो.
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