Saraikela: हाथियों की मौत और जंगल का अंत, सरायकेला में कौन है असली दोषी?

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सरायकेला:  सरायकेला जिले की ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र हाल के वर्षों में लगातार हाथियों की अप्राकृतिक मौतों का गवाह बनता जा रहा है. कभी कुएं में गिरकर, कभी बिजली के तारों से झुलसकर, तो कभी ज़हर देकर… सवाल यह है कि इन मौतों के पीछे ज़िम्मेदार कौन है?

तीन हाथियों की मौत – तीन अलग कहानियां
ईचागढ़ में हाल ही में तीन हाथियों की मौत ने वन विभाग और प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है:

  1. अंडा गांव: हाथी की मौत खुले कुएं में गिरने से हुई.
  2. हेवेन गांव: बिजली के खुले तारों से झुलसकर हाथी की जान चली गई.
  3. तिल्ला गांव: पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ज़हर देकर मारे जाने की पुष्टि हुई.

हेवेन गांव की घटना को वन विभाग ने गंभीरता से लिया है और ग्रामीण रघुनाथ सिंह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है. इसके बाद क्षेत्र में बिजली के तार लगाने पर रोक की चेतावनी भी दी गई है.

हेवेन जंगल में आग क्यों लगी?
मामले की तह तक पहुंचने पर यह साफ़ हुआ कि हेवेन जंगल के आसपास बीते वर्ष बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई हुई थी. जंगल के सामने स्थित लावा गोल्ड माइंस में काम करने वाले श्रमिक रोज़ इसी जंगल से होकर गुजरते हैं. हाथियों के बढ़ते मूवमेंट और खतरे को देखते हुए मजदूरों ने कथित रूप से पहले जंगल में आग लगाई, फिर जले हुए पेड़ों को ‘सूखा’ बताकर काट डाला.

चांडिल डैम के निर्माण के कारण पुराने एलिफैंट कॉरिडोर बाधित हो गए हैं. हाथियों ने अपनी दिशा बदलकर हेवेन जंगल से गुजरना शुरू कर दिया. लेकिन अब वही जंगल उजड़ चुका है. परिणामस्वरूप हाथियों और मानव आबादी के बीच सीधा टकराव बढ़ गया है.

श्रमिकों का शोषण और भटकाव
लावा गोल्ड माइंस से जुड़ी यह पूरी व्यवस्था बिना पर्यावरणीय मानकों और उचित निगरानी के चल रही है. ग्रामीणों को न्यूनतम मज़दूरी पर सालों से मजदूर की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. इनमें से अधिकतर विस्थापित परिवार यह तक नहीं समझ पाते कि असली समस्या क्या है. दिग्भ्रमित होकर वे ऐसे हिंसक और अवैज्ञानिक रास्ते अपनाने लगते हैं, जिनका खामियाजा अंततः वन्यजीवों को भुगतना पड़ता है.

कब तक चलता रहेगा यह “विकास”?
हम किस विकास की दौड़ में शामिल हैं? एक ऐसी दौड़, जहां अंत में देखने और जीने वाला कोई नहीं बचेगा. क्या हम वही गलती दोहराने जा रहे हैं जिससे सिंधु घाटी जैसी सभ्यताएं भी समाप्त हो गई थीं?

वन्यजीवों के बिना मानव समाज की कल्पना अधूरी है. आज आवश्यकता है कि हम इतिहास से सबक लें और विकास को प्रकृति की कीमत पर नहीं, बल्कि उसके साथ मिलकर परिभाषित करें. शिक्षा का यही तो मूल उद्देश्य है—ज्ञान, समझ और विवेक.

रिपोर्ट: विजय कुमार

 

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