
चांडिल : सरायकेला खरसांवा जिला के ईचागढ़ प्रखंड अंतर्गत बुरुहातु पंचायत की ग्राम प्रधान बलभद्र गोराई की कहानी एक ऐसी दास्तां है, जो बुढ़ापे में भी परिवार के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देती है। नौ परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी संभालते हुए, वे आज भी टेंपू चलाकर अपनी आजीविका चलाते हैं। उनका दैनिक संघर्ष कड़ी मेहनत और समर्पण का प्रतीक है। वर्ष 2006 से ईचागढ़ विधान सभा क्षेत्र में सेवा दे रहे है। परंतु आज खुद ईचागढ़ प्रखंड कार्यालय का चक्कर काट रहे है। गोराई ने कहा जिला से सदन के साथ उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करेंगे साथ ही न्याय के लिए गुहार लगाने की बाते की ।
ग्राम प्रधान के कार्य और अधिकार
ै
ग्राम प्रधान के रूप में, बलभद्र गोराई के पास कई महत्वपूर्ण कार्य और अधिकार होते हैं:
– प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देना: ग्राम प्रधान का एक प्रमुख कार्य गांव में शिक्षा को बढ़ावा देना है, खासकर गरीब परिवारों के बच्चों के लिए।
– कृषि को बढ़ावा देना: कृषि क्षेत्र में विकास और समर्थन प्रदान करना, जिसमें किसानों को आवश्यक संसाधन और सुविधाएं प्रदान करना शामिल है।
– दाह संस्कार और कब्रिस्तान का रखरखाव: गांव में दाह संस्कार और कब्रिस्तान के लिए उचित व्यवस्था करना।
– सार्वजनिक स्थानों पर लाइट की व्यवस्था करना: सार्वजनिक स्थानों पर उचित प्रकाश व्यवस्था सुनिश्चित करना।
– शौचालय की व्यवस्था करना: गांव में स्वच्छता और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए शौचालयों का निर्माण और रखरखाव करना।
– वृद्धा पेंशन और अन्य योजनाओं का लाभ: ग्राम प्रधान को वृद्धा पेंशन और अन्य सरकारी योजनाओं के लिए आवेदन करने और लाभार्थियों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी होती है।
चुनौतियाँ और संघर्ष
बलभद्र गोराई की कहानी में कई चुनौतियाँ और संघर्ष हैं:
– आर्थिक संघर्ष: टेंपू चलाकर परिवार का पालन-पोषण करना एक बड़ा चुनौती है।
– प्रशासनिक बाधाएं: अंचल कार्यालय में मानदेय और वृद्धा पेंशन के लिए चक्कर काटना एक बड़ी चुनौती है।
– ग्रामीण विकास की कमी: गांव में विकास कार्यों की कमी और प्रशासन की अनदेखी एक बड़ा मुद्दा है।
निष्कर्ष
बलभद्र गोराई की कहानी एक प्रेरणादायक उदाहरण है जो हमें संघर्ष और समर्पण के महत्व को सिखाती है। उनकी कहानी हमें ग्राम प्रधान की भूमिका और जिम्मेदारियों के बारे में भी बताती है, जो गांव के विकास और ग्रामीणों के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है।