
चाईबासा: सारंडा क्षेत्र, जहां धरती के गर्भ में लौह अयस्क और मैंगनीज जैसे बहुमूल्य खनिज भरे हैं, और जिसकी सतह पर एशिया के घने साल (सखुआ) वन फैले हैं, वह इलाका आज गंभीर आर्थिक संकट और बेरोजगारी का शिकार हो चुका है.
बड़ाजामदा क्षेत्र के समाजसेवी आलोक दता ने सारंडा क्षेत्र में तेजी से बढ़ रही बेरोजगारी और पलायन पर गहरी चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि जहां इतनी संपदा है, वहां के लोग आज भुखमरी और शोषण के बीच जीवन काटने को मजबूर हैं, यह राज्य व्यवस्था की विफलता को दर्शाता है.
खदानें बंद, उम्मीदें ठंडी
वर्तमान में केवल सेल (SAIL) द्वारा संचालित किरीबुरु, मेघाहातुबुरु, गुवा, चिड़िया तथा टाटा स्टील की विजय-2 खदानें ही कुछ हद तक सक्रिय हैं. लेकिन 2021 से पहले चालू लगभग दर्जन भर खदानें बंद कर दी गईं, जो अब तक दोबारा चालू नहीं की गई हैं. इससे स्थानीय रोजगार का संकट और गहराता जा रहा है.
आलोक दता ने बताया कि सेल प्रबंधन द्वारा स्थानीय बेरोजगार युवाओं को दरकिनार कर, चतुर्थ श्रेणी की नियुक्तियों में बाहरी लोगों को प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे क्षेत्र में असंतोष और हताशा का माहौल है.
गांव में न खेती, न रोजगार
स्थानीय युवाओं का कहना है कि गांवों में न तो खेती लायक ज़मीन है और न ही वैकल्पिक आय के साधन. खदानों के बंद होने और सरकारी उपेक्षा ने मिलकर गांवों को बेरोजगारी का अड्डा बना दिया है. सरकारी योजनाएं या तो कागजों में सिमटी हैं या बिचौलियों की जेब में खो जाती हैं.
पलायन की बढ़ती विवशता और नाबालिगों पर असर
बेरोजगारी से त्रस्त हजारों युवा बाहर के शहरों में पलायन कर रहे हैं, जहां उन्हें मजदूरी या न्यूनतम वेतन पर काम करना पड़ता है. सबसे गंभीर पहलू यह है कि इस बेरोजगारी की सबसे गहरी मार नाबालिग बच्चों पर पड़ रही है.
दलालों द्वारा बहला-फुसला कर इन्हें महानगरों में ले जाया जाता है, जहां ये घरेलू नौकर, होटल-ढाबों के मजदूर या फिर गलत धंधों में जबरन धकेल दिए जाते हैं.
प्रशासन से ठोस पहल की मांग
समाजसेवी आलोक दता ने इस गंभीर सामाजिक संकट के स्थायी समाधान के लिए पश्चिम सिंहभूम जिला प्रशासन से तत्काल ठोस कार्रवाई की मांग की है. उन्होंने कहा कि यदि सारंडा की खदानों को वैज्ञानिक और टिकाऊ तरीके से फिर से चालू किया जाए, तो यह क्षेत्र राज्य की रीढ़ बन सकता है.
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