
पंचायती राज व्यवस्था में ग्रामीण क्षेत्रों में नियमित कचरा उठाव व निष्पादन का कोई प्रावधान नहीं

जमशेदपुर डेस्क : घरों से निकलने वाले कूड़ा कचरा का अपना कोई जाति धर्म नहीं होता और ना ही उसका कोई रंग होता है. उसको जिस रंग में आप रंग दे वह तो उसी रंग का हो जाता है. यह तो लोगों की मानसिकता है कि वो कूड़ा कचरा में भी राजनीति ढ़ूढ़ लेते है. तभी तो किसी विशेष समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के धर्म स्थल के सामने कचरा फेंकने मात्र से बवाल हो जाता है और लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं. कहीं तो कचरा फेंकने को लेकर दो अलग अलग राजनीति दल के लोग आमने सामने आ खड़े होते है. पिछले दिनों मानगो के घरों से निकलने वाले कचरा को फेंकने को लेकर एक राजनीतिक दल द्वारा पूरजोर विरोध किया गया मानों कचरा को उस क्षेत्र मे डंप करने मात्र से उनका वोट बैंक ही खिसक जाएगा.
ग्रामीण क्षेत्रों में कचरा उठाव व निष्पादन का नहीं है कोई प्रावधान
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पूरे देश में प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छता अभियान के तहत साफ सफाई पर पूरा ध्यान दिया गया. बल्कि यूं कहें कि सफाई से ज्यादा प्रचार और फोटो खिचाई पर विशेष जोर दिया गया. स्वच्छता अभियान कार्यक्रम केवल शहरों को ध्यान में रखकर बनाया गया था. क्योंकि सरकार को लगता है कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग तो कचरा फैलाते ही नहीं, तभी तो ग्रामीण क्षेत्रों में कचरा के नियमित उठाव व निष्पादन के लिए कोई नियम प्रावधान नहीं है. 14वें औऱ 15वें वित्त आयोग में ग्रामीण क्षेत्रों से निकलने वाले गिला व ठोस कचरा के निष्पादन के लिए कोई प्रावधान ही नहीं, जिसके कारण जनप्रतिनिधियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. पंचायती राज की परिकल्पना तो बहुत अच्छी है, लेकिन क्या ग्रामीणों क्षेत्र में घरों से निकलने वाले कचरों के निष्पादन की उचित व्यवस्था किए बिना ग्रामीण क्षेत्रों का विकास संभव है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि पंचायती राज व्यवस्था में ग्रामीण क्षेत्रों में कचरा उठाव व निष्पादन का कोई प्रावधान नहीं है और उससे भी मजेदार बात यह है कि अभी तक जनप्रतिनिधियों द्वारा इस संबंध में उचित मंच पर आवाज भी नहीं उठायी गई है.
बागबेड़ा आवासीय कॉलोनी में लगा है कचरे का अंबार
पंचायत क्षेत्रों में कचरा प्रबंधन नहीं होने के कारण बागबेड़ा हाऊसिंग कॉलोनी में हर तरफ कचरों का अंबार लगा हुआ है और यह कोई नई बात नहीं. जब लोगों का गुस्सा फुटता है तो जनप्रतिनिधियों द्वारा कचरों की सफाई करवायी जाती है. उसमें भी नेताओं में क्रेडिट लेने के लिए होड़ मच जाती है. मीडिया द्वारा पिछले दिनों जब इस मामले को उठाया गया तो प्रशासन की कुंभकर्णी निंद्रा टूटी और बैठक कर पदाधिकारियों को निर्देश दिया गया कि बागबेड़ा हाउसिंग कॉलोनी सहित पंचायत क्षेत्र में कचरा उठाव एवं निष्पादन के लिए सर्वे कर रणनीति बनाएं. आपको बता दें कि टाटानगर स्टेशन से बड़ौदा घाट मुख्य सड़क पर स्थित मजार के सामने कचरों का अंबार लगा हुआ है, वहीं रेलवे फिल्टर प्लांट के पास हनुमान मंदिर के सामने भी कचरों का अंबार है. लेकिन इसको लेकर कोई भी नेता आवाज नहीं उठाता है. धर्म स्थलों के सामने फैले कचरा से अब तो ना किसी का धर्म भ्रष्ट हो रहा है और ना ही पूजा स्थल अपवित्र होता है. क्योंकि कचरा फेंकने में तो सबका योगदान है. मतलब सबका योगदान और कचरा को मिला वरदान, सोचिए जरुर ……..
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