
नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने रैगिंग के मामलों पर कड़ा रुख अपनाते हुए उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रमुखों की जिम्मेदारी तय की है. शैक्षणिक सत्र 2025-26 के लिए जारी किए गए नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, रैगिंग की किसी भी घटना की जिम्मेदारी अब कुलपति, निदेशक और रजिस्ट्रार पर होगी. यदि संस्थान में रैगिंग का मामला सामने आता है, तो इन प्रमुख अधिकारियों के खिलाफ यूजीसी के नियमों के तहत कठोर कार्रवाई की जाएगी.
रैगिंग के खिलाफ शपथपत्र की अनिवार्यता
निर्देशों के मुताबिक, ऑनलाइन प्रवेश आवेदन के साथ सभी विद्यार्थियों से हलफनामा लिया जाएगा. इसमें छात्र यह वादा करेंगे कि वे किसी भी रैगिंग गतिविधि में शामिल नहीं होंगे. चूंकि अब अधिकांश संस्थान ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया का पालन करते हैं, इसलिए यह शपथपत्र हर वर्ष छात्रों से लिया जाएगा, जिसमें उनका पंजीकरण नंबर भी शामिल होगा. यह कदम संस्थानों को रैगिंग के खिलाफ सख्त कदम उठाने के लिए बाध्य करेगा.
दृष्टिकोण और कार्रवाई के नए रास्ते
यूजीसी ने स्पष्ट किया है कि कैंपस में रैगिंग जैसी घटनाओं को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इसके लिए सभी विद्यार्थियों, शिक्षकों और कर्मियों को जागरूक किया जाएगा. उच्च शिक्षण संस्थानों को एक एंटी रैगिंग कमेटी बनानी होगी और परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाने होंगे ताकि रैगिंग जैसे अपराधों को रोका जा सके. इसके अलावा, यदि किसी परिसर में आत्महत्या, हत्या या अन्य गंभीर घटनाएँ होती हैं, तो इन मामलों की जांच के लिए एक समिति बनाई जाएगी, जो अपनी रिपोर्ट यूजीसी को सौंपेगी. अगर पुलिस जांच होती है, तो कानूनी सलाहकार को भी समिति में शामिल किया जाएगा.
झूठी जानकारी देने पर सख्त सजा
निर्देशों के तहत, यदि संस्थान झूठी जानकारी देता है या रैगिंग के मामलों को दबाने की कोशिश करता है, तो उस संस्थान की मान्यता रद्द करने, जुर्माना लगाने और कोर्स की मंजूरी वापस लेने तक की कार्रवाई की जा सकती है.
रैगिंग से हुई 51 छात्रों की मौत
देशभर के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में रैगिंग के कारण 2022 से 2024 तक 51 छात्रों की जान चली गई. यह आंकड़ा कोटा के कोचिंग संस्थानों में हुई 57 छात्रों की खुदकुशी के आसपास है. सोसाइटी अगेंस्ट वायलेंस इन एजुकेशन (सेव) द्वारा जारी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है.
मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग की गंभीरता
रैगिंग के सबसे बड़े केंद्र मेडिकल कॉलेज हैं, जहां 38.6 प्रतिशत शिकायतें दर्ज की जाती हैं. इस दौरान 35.4 प्रतिशत गंभीर मामले और 45.1 प्रतिशत मौतें मेडिकल कॉलेजों से आई हैं. यह चौंकाने वाली बात है कि देश में मेडिकल छात्र सिर्फ 1.1 प्रतिशत हैं, फिर भी अधिकांश गंभीर रैगिंग घटनाएँ यहीं होती हैं.
क्यों चुप रहते हैं पीड़ित?
तीन वर्षों में राष्ट्रीय रैगिंग विरोधी हेल्पलाइन पर केवल 3,156 शिकायतें दर्ज की गईं. यह आंकड़ा वास्तविक तस्वीर को नहीं दर्शाता, क्योंकि कई शिकायतें सीधे कॉलेजों या पुलिस में दर्ज की जाती हैं. इसके अलावा, अधिकांश पीड़ित सुरक्षा के डर से चुप रहते हैं या शिकायत दर्ज करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते.