Chaiti Chhath 2025: छठ महापर्व का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व, क्यों है छठ पूजा भारतीय समाज में खास?

Spread the love

जमशेदपुर: छठ महापर्व भारत में एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बंगाल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व सूर्य पूजा से संबंधित है, जिसमें खासतौर पर सूर्यदेव और उनकी पत्नी छठी मईया की आराधना की जाती है. छठ पूजा के दो प्रमुख रूप होते हैं: चैती छठ (चैत्र छठ) और कार्तिक छठ. जबकि कार्तिक छठ ठंड के मौसम में मनाया जाता है, चैती छठ की शुरुआत गर्मी के मौसम में होती है.

चैती छठ का महत्व और दिनांक

चैती छठ इस वर्ष 3 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा. इस दिन व्रती 36 घंटे का कठिन उपवास रखते हैं, जिसमें वे न तो अन्न खाते हैं और न ही जल पीते हैं. यह व्रत खासकर संतान सुख और उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाता है.

विशेष पूजा और उपवास की प्रक्रिया

चैती छठ में सूर्यदेव के प्रति गहरी श्रद्धा दिखाई जाती है. इस दिन उत्तर प्रदेश के मथुरा-वृंदावन में यमुना के किनारे छठ पूजा विशेष रूप से भक्ति और उत्साह के साथ मनाई जाती है. इसके अतिरिक्त, यह पर्व देशभर में अपनी सांस्कृतिक धरोहर और श्रद्धा के लिए जाना जाता है.
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 2 अप्रैल 2025 को रात 11 बजकर 49 मिनट पर शुरू होगी और 3 अप्रैल 2025 को रात 9 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगी.

नहाय खाय और खरना के दिन

नहाय खाय, जो कि इस व्रत का प्रारंभिक दिन होता है, 1 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा. इस दिन व्रती चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी का सेवन करते हैं. इस दिन देवी कूष्मांडा की पूजा भी की जाती है, जो चैत्र नवरात्रि के हिस्से के रूप में होती है.

खरना 2 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा. इस दिन व्रती विशेष रूप से एकांत में खीर खाते हैं, और इसके बाद व्रत की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. इस दिन माता देवी स्कंदमाता की पूजा होती है, जो कार्तिकेय की माता मानी जाती हैं.

अर्घ्य और पारण का दिन – चैती छठ के व्रति 3 अप्रैल 2025 को डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगे, और अगले दिन 4 अप्रैल को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाएगा.

छठ पूजा का महत्व

छठ महापर्व को लोक-आस्था का महापर्व कहा जाता है. यह पर्व संतान सुख, सुहाग और घर-परिवार की सुख-शांति के लिए मनाया जाता है. इसके अलावा, इस दिन पारंपरिक गीतों और ठेकुआ प्रसाद का विशेष महत्व है. छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण से मानी जाती है, जिन्होंने सबसे पहले सूर्य की उपासना पानी में घंटों खड़े होकर की थी.

छठ पूजा की सांस्कृतिक धरोहर
छठ महापर्व न केवल धार्मिक आस्थाओं से जुड़ा हुआ है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा बन चुका है. यह पर्व श्रद्धा, परिवार और समाज की एकता को मजबूत करता है और लोगों को जीवन में सुख-समृद्धि की ओर अग्रसर करता है.

 

इसे भी पढ़ें : Chaitra Navratri 2025: 9 दिन के बजाय 8 दिन मनाया जाएगा यह महापर्व, जानिए किस दिन कौन सा भोग लगाएं 


Spread the love

Related Posts

Chaibasa: दुराचार की घटना के बाद मां वनदेवी दरबार में विधिवत पूजा आरंभ, श्रद्धालुओं में दिखा उत्साह

Spread the love

Spread the loveगुवा:  नूईया पंचायत स्थित वनदेवी मंदिर में मां दुर्गा की प्रतिमा की विधिवत पूजा का शुभारंभ पुजारी नवी महापात्रा द्वारा कर दिया गया है. मंदिर परिसर को भक्ति…


Spread the love

Jamshedpur: “हर हर महादेव” से गूंजा काशीडीह, सहस्रघट और भंडारे में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब

Spread the love

Spread the loveजमशेदपुर:  काशीडीह स्थित श्री श्री नीलकंठेश्वर हनुमान मंदिर में सहस्रघट जलाभिषेक और भंडारे का भव्य आयोजन श्रद्धा और उल्लास के साथ सम्पन्न हुआ. यह कार्यक्रम मारवाड़ी समाज काशीडीह,…


Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *