
जमशेदपुर: झारखंड के सर्वमान्य नेता, आदिवासी चेतना के प्रतीक और लोकतंत्र की आत्मा माने जाने वाले दिशोम गुरु शिबू सोरेन आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका जीवन और संघर्ष आज भी लाखों दिलों की प्रेरणा बने हुए हैं।
उनके नेतृत्व में शोषित, वंचित, आदिवासी और गरीब तबकों को एक पहचान मिली, और जिस झारखंड राज्य का सपना वर्षों से अधूरा था, वह उनकी अगुवाई में हकीकत बना। उन्होंने सिर्फ राजनीतिक आंदोलन नहीं किया, बल्कि सामाजिक बदलाव और आत्मसम्मान की एक मजबूत नींव रखी।
सिर्फ पद्म नहीं, राष्ट्र का सर्वोच्च सम्मान मिलना चाहिए
जनजातीय मुद्दों पर लिखने वाले चिंतक संदीप मुरारका ने वर्ष 2017 में ही भारत सरकार को पत्र लिखकर शिबू सोरेन को पद्म सम्मान देने की मांग की थी। पर अब समय की पुकार है कि उन्हें मरणोपरांत “भारत रत्न” से सम्मानित किया जाए।
क्योंकि उनका योगदान किसी क्षेत्रीय या सीमित दायरे का नहीं था — उन्होंने आदिवासी अस्मिता, संविधानिक अधिकार और सामाजिक समरसता के लिए जिस स्तर पर संघर्ष किया, वह राष्ट्रीय स्तर पर मिसाल बन गया।
पिछले वर्षों में किन्हें मिले भारत रत्न और पद्म सम्मान
हाल के वर्षों में भारत रत्न से सम्मानित हुए नेताओं में कर्पूरी ठाकुर, चौधरी चरण सिंह, प्रणव मुखर्जी जैसे नाम शामिल हैं।
वहीं पद्म विभूषण व पद्म भूषण से देश के कई राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्री जैसे मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, सुषमा स्वराज, प्रकाश सिंह बादल, मनोहर पर्रिकर, तरुण गोगोई, गुलाम नबी आज़ाद, केशुभाई पटेल आदि सम्मानित हो चुके हैं।
शिबू सोरेन का संघर्ष और कद इन सभी में कहीं अधिक व्यापक, ऐतिहासिक और समावेशी रहा है।
भारत रत्न अगर स्वर्गीय शिबू सोरेन को मरणोपरांत दिया जाता है, तो यह केवल झारखंड के लिए नहीं, बल्कि यह पूरे भारत के आदिवासी समाज के सम्मान, संघर्ष और अधिकारों के प्रति एक गहरी संवेदनशीलता और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का प्रतीक होगा।
लेखक संदीप मुरारका की यह अपील सिर्फ एक व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि एक विचार, एक आंदोलन और एक पहचान के लिए है।