
खड़गपुर: खड़गपुर मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) के आधिकारिक आवास को घेरने का राजनीतिक संगठनों का प्रयास रेलवे सुरक्षा बल (RPF) की तत्परता के कारण विफल हो गया. यह आंदोलन 11 जून को सुबह लगभग 8 बजे शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य रेलवे द्वारा चलाए जा रहे अतिक्रमण विरोधी अभियान का विरोध करना था.
आंदोलनकारियों ने किसी प्रकार की पूर्व अनुमति नहीं ली थी और बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के सेरसा स्टेडियम मार्ग पर एकत्र होकर प्रदर्शन शुरू कर दिया. इनका उद्देश्य वैधानिक रूप से जारी निकासी अभियान को बाधित करना था.
स्थानीय लोगों का समर्थन नहीं मिला, प्रदर्शनकारियों की संख्या घटी
राजनीतिक संगठनों ने दावा किया था कि 1500 से अधिक लोग इस विरोध में भाग लेंगे. लेकिन वास्तविकता में केवल 150 के आसपास लोग ही जुट पाए. इनमें से अधिकांश एक विशेष राजनीतिक संगठन से जुड़े थे, जबकि कुछ स्थानीय निवासी शामिल थे.
स्थानीय जनता ने रेलवे की अपील का समर्थन किया और आंदोलनकारियों के साथ खड़े होने से परहेज़ किया.
सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद, आरपीएफ ने स्थिति संभाली
रेलवे प्रशासन द्वारा डीआरएम आवास की सुरक्षा हेतु पहले से ही आरपीएफ और RPSF के जवानों को तैनात कर दिया गया था. आंदोलनकारियों ने डीआरएम के वाहन को कार्यालय जाने से रोकने का प्रयास किया, जिससे टकराव की स्थिति बनी. इस दौरान हुई झड़प में एक एएसआई और दो महिला कांस्टेबल सहित पांच आरपीएफ कर्मी घायल हो गए, जिन्हें रेलवे अस्पताल में भर्ती कराया गया.
रेलवे कॉलोनी की 6वें एवेन्यू रोड, सेरसा स्टेडियम और ऑफिसर्स क्लब के पास की सड़कें जाम कर दी गईं, जिससे कॉलोनीवासियों को भारी असुविधा हुई और भय का माहौल बना.
राज्य पुलिस की निष्क्रियता पर उठे सवाल
रेलवे प्रशासन ने समय रहते डीएम और एसपी मेदिनीपुर को इस संभावित विरोध के बारे में सूचित किया था. लेकिन, राज्य पुलिस की ओर से लगभग दो घंटे बाद, करीब 10:45 बजे महज़ 11 पुलिसकर्मी मौके पर पहुंचे.
इस देरी को लेकर रेलवे प्रशासन और आम लोगों में नाराज़गी देखी गई.
रेलवे की दो टूक – “अतिक्रमण नहीं चलेगा”
दक्षिण पूर्व रेलवे ने दोहराया कि अतिक्रमण विरोधी अभियान रेलवे अधिनियम और उच्चाधिकारियों के निर्देशों के अनुरूप चलाया जा रहा है. रेलवे भूमि पर अतिक्रमण यात्रियों, कर्मचारियों और बुनियादी ढांचे के लिए गंभीर खतरा बनता है और इसे किसी भी स्थिति में सहन नहीं किया जा सकता.
रेलवे ने फिर अपील की कि आम नागरिक इस तरह के अवैध आंदोलनों और झूठे प्रचारों में शामिल न हों.
राजनीतिक संगठनों का यह प्रयास, जो बिना जनसमर्थन और कानूनी वैधता के किया गया, रेलवे की सख्ती और जनता की समझदारी के सामने बिखरता नजर आया. जहां एक ओर आंदोलनकारियों ने “डीआरएम हटाओ”, “बस्ती बचाओ” जैसे नारे लगाए, वहीं स्थानीय लोग रेलवे के विकासवादी रुख के साथ खड़े दिखाई दिए.
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