
नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य तनाव के समय जब ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा जोरों पर थी, तब एक नाम विशेष रूप से उभरा—विंग कमांडर व्योमिका सिंह. लखनऊ की इस बेटी ने न केवल अपने असाधारण नेतृत्व और वीरता से आतंकवाद के विरुद्ध भारत की सैन्य प्रतिक्रिया को नई पहचान दी, बल्कि भारतीय वायुसेना में महिला अधिकारियों की भूमिका को भी नया आयाम दिया.
व्योमिका सिंह देश की शुरुआती महिला हेलीकॉप्टर पायलटों में से एक हैं. अब तक वे 2500 से अधिक घंटे की उड़ान भर चुकी हैं—जो किसी भी सैन्य पायलट के लिए विशिष्ट उपलब्धि मानी जाती है. चेतक और चीता जैसे हेलीकॉप्टरों की कमान उन्होंने बखूबी संभाली है.
जातिगत बयानबाज़ी में उलझा सम्मान
ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद जब समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने प्रेस को संबोधित किया, तो उन्होंने व्योमिका सिंह की जाति पर टिप्पणी कर नया विवाद खड़ा कर दिया.
रामगोपाल यादव ने कहा,
“मैं आपको बता दूं, व्योमिका सिंह हरियाणा की जाटव हैं और एयर मार्शल भारती पूर्णिया यादव हैं. तीनों पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग से थे. एक को मुसलमान समझकर गाली दी, एक को राजपूत समझकर कुछ नहीं किया और भारती के बारे में जानकारी नहीं थी. जब पेपर में आया तब सोचने को विवश हो गए कि अब क्या करें.”
इस बयान के बाद सोशल मीडिया से लेकर रक्षा विशेषज्ञों तक में तीखी प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं. अनेक लोगों ने सैन्य कर्मियों की जाति की चर्चा को अनुचित और अपमानजनक बताया है.
उत्तर प्रदेश की बेटी, हरियाणा की बहू
व्योमिका सिंह लखनऊ की रहने वाली हैं, जहां उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की. स्कूली दिनों में ही NCC कैडेट बनने के बाद उन्होंने अनुशासन और देशभक्ति की नींव रख दी थी. बाद में उन्होंने इंजीनियरिंग में स्नातक किया. उनकी शादी हरियाणा के भिवानी जिले के बापोड़ा गाँव में हुई, जिसे फौजियों का गाँव कहा जाता है. उनके पति विंग कमांडर दिनेश सिंह सभ्रवाल भी भारतीय वायुसेना में कार्यरत हैं.
ऑपरेशन सिंदूर में निर्णायक नेतृत्व
ऑपरेशन सिंदूर में विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने जटिल परिस्थितियों में न केवल हेलीकॉप्टर स्क्वाड्रन का नेतृत्व किया, बल्कि निर्णायक निर्णय लेकर मिशन को सफलता की ओर पहुँचाया. उनके इस साहसिक योगदान की चारों ओर प्रशंसा हो रही है. यह ऑपरेशन पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी ठिकानों पर केंद्रित था, जो भारत की सैन्य क्षमता का प्रतीक बन गया.
उनकी भूमिका ने यह सिद्ध किया कि भारतीय सेना में महिलाएं भी किसी भी स्तर पर समान रूप से नेतृत्व करने में सक्षम हैं. उन्होंने उन पूर्वाग्रहों को चुनौती दी है जो अब भी महिला अधिकारियों की क्षमता पर सवाल खड़े करते हैं.
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