
पश्चिमी सिंहभूम: पश्चिमी सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड के बोकना गांव में भूमि सीमांकन को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है. सीमांकन की पूर्व सूचना के बाद आज गांव में बड़ी संख्या में ग्रामीण पारंपरिक हथियारों के साथ एकत्रित हुए. उन्होंने विरोध जताते हुए सीमांकन की प्रक्रिया को रोकने की मांग की. इस विरोध की अगुवाई गांव के मुंडा विक्रम चाँपिया कर रहे थे.
पुश्तैनी जमीन पर कंपनी का दावा, ग्रामीणों ने जताई आपत्ति
जानकारी के अनुसार, राजस्व विभाग द्वारा जारी सूचना में बोकना मौजा के खाता संख्या 60, प्लॉट संख्या 627, कुल 5.80 एकड़ भूमि का सीमांकन किया जाना था. यह प्रक्रिया शिवांस स्टील प्राइवेट लिमिटेड के आवेदन पर होनी थी. कंपनी की ओर से प्रतिनिधि मनोज सिन्हा ने आवेदन दिया था.
लेकिन गांव के निवासी सुशेन गौड़ ने इस भूमि पर गंभीर आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि यह ज़मीन उनके पूर्वज मिलु गौड़ के नाम पर पुश्तैनी संपत्ति के रूप में दर्ज है. उन्होंने पहले ही अंचल अधिकारी को दस्तावेजों सहित आवेदन देकर स्पष्ट कर दिया था कि यह ज़मीन उनकी है.
अंचल अधिकारी नहीं पहुंचे, ग्रामीणों में आक्रोश
सीमांकन की पूर्व सूचना के बावजूद अंचल कार्यालय का कोई अधिकारी गांव नहीं पहुंचा. इससे ग्रामीणों में असंतोष और अधिक बढ़ गया. पारंपरिक हथियारों के साथ खड़े ग्रामीणों ने स्पष्ट किया कि जब तक उनके दावे की निष्पक्ष जांच नहीं होती, वे किसी भी तरह की मापी की अनुमति नहीं देंगे.
प्रशासन पर मिलीभगत का आरोप
सुशेन गौड़ सहित अन्य ग्रामीणों का आरोप है कि इस भूमि को एक निजी कंपनी के पक्ष में सीमांकित कर, उन्हें सौंपने की साजिश चल रही है. उन्होंने प्रशासन और कंपनी के बीच मिलीभगत की आशंका जताई है. ग्रामीणों ने चेताया कि यदि मापी बलपूर्वक कराई गई, तो वे बड़े स्तर पर विरोध करेंगे और किसी भी अप्रिय स्थिति के लिए प्रशासन जिम्मेदार होगा.
‘न्याय चाहिए, टकराव नहीं’: मुंडा विक्रम चाँपिया की अपील
गांव के मुंडा विक्रम चाँपिया ने जिला प्रशासन से अपील करते हुए कहा, “यह मामला केवल सीमांकन का नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व और अधिकार का है. प्रशासन को चाहिए कि वह विवाद की गंभीरता को समझे और किसी भी टकराव से पहले सभी पक्षों की बातें सुने, दस्तावेजों की जांच करे और निष्पक्ष निर्णय दे.”
क्या यह एक नए संघर्ष की भूमिका है?
बोकना गांव में उठे इस विवाद ने एक बार फिर झारखंड में भूमि अधिकार, आदिवासी हित और प्रशासन की पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या यह मामला केवल सीमांकन तक सिमटेगा या एक बड़े सामाजिक संघर्ष का रूप लेगा, यह आने वाला समय बताएगा.
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