
सारंडा: सारंडा के विभिन्न क्षेत्रों में टुसू पर्व पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया. ग्रामीणों ने दोदारी और सलाई गांवों में इस परंपरागत पर्व का आयोजन किया, जहां युवक और युवतियां पारंपरिक गीतों और नृत्य में सम्मिलित होते देखे गए.
नृत्य और पूजा में आकर्षक परिधानों में महिलाएं
सलाई गांव में आयोजित टुसू पर्व में महिलाओं ने अपनी पारंपरिक वेशभूषा में पूजा-अर्चना की और नृत्य-गीतों में हिस्सा लिया. यह दृश्य न केवल ग्रामीण संस्कृति का प्रतीक था, बल्कि परंपराओं के प्रति उनकी गहरी आस्था को भी दर्शाता है.
प्रकृति से जुड़ा पर्व
गांगदा पंचायत के मुखिया राजू सांडिल ने कहा कि टुसू पर्व झारखंड के पंचपरगना क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. यह जाड़ों में फसल कटाई के बाद 15 दिसंबर से मकर संक्रांति तक मनाया जाता है. टुसू का शाब्दिक अर्थ “कुंवारी” है.
प्रकृति और संस्कृति का संगम
मुखिया ने बताया कि झारखंड के अधिकांश पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़े हुए हैं, लेकिन टुसू पर्व का महत्व अनोखा है. यह पर्व न केवल कृषि पर आधारित है, बल्कि इसमें प्रकृति के साथ सामंजस्य और समर्पण की भावना झलकती है.
ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी
टुसू पर्व के अवसर पर स्थानीय ग्रामीण मंगल कुम्हार, श्याम सुरीन, सन्नी, बबली कुमारी, संजू दास, नीलम दास, राजा हुरद, नंद कुमार, रीता सांडिल और कई अन्य उपस्थित थे. सभी ग्रामीणों ने एकजुट होकर इस पर्व को सफल बनाया और यह सुनिश्चित किया कि यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों तक संरक्षित रहे. टुसू पर्व झारखंड की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर का प्रतीक है. सारंडा के गांवों में इस पर्व के आयोजन ने न केवल ग्रामीणों की सामूहिक एकता को प्रदर्शित किया, बल्कि पारंपरिक मूल्यों के प्रति उनकी आस्था और समर्पण को भी दर्शाया.
इसे भी पढ़ें: West Singhbhum: विधिक जागरूकता अभियान के तहत डालसा ने दी गुड टच-बैड टच की जानकारी