
नई दिल्ली: कैथोलिक समाज के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. वे पिछले कई सप्ताह से निमोनिया से पीड़ित थे और वेटिकन सिटी स्थित जेमेली अस्पताल में भर्ती थे. आज सुबह 7:35 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन से विश्वभर के 1.4 अरब कैथोलिक अनुयायियों में शोक की लहर फैल गई है.
लंबे समय से चल रही थी बीमारी
पोप फ्रांसिस को 14 फरवरी को अस्पताल में भर्ती किया गया था. डॉक्टरों ने उन्हें डबल निमोनिया की गंभीर स्थिति में पाया था. इलाज के दौरान उन्होंने लगभग 38 दिन अस्पताल में बिताए. पिछले सप्ताह वे सेंट पीटर्स स्क्वायर में आयोजित सामूहिक प्रार्थना का नेतृत्व भी नहीं कर पाए थे. चिकित्सकों ने उन्हें पूर्ण आराम की सलाह दी थी.
वेटिकन का आधिकारिक बयान
वेटिकन सिटी की ओर से जारी बयान में कहा गया, “आज सुबह 7:35 बजे रोम के बिशप, फ्रांसिस, फादर के घर लौट गए. उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन चर्च की सेवा, करुणा और समर्पण के साथ जिया.”
ईस्टर प्रार्थना में नहीं ले सके थे भाग
इस वर्ष ईस्टर के अवसर पर पोप फ्रांसिस सार्वजनिक प्रार्थना में हिस्सा नहीं ले सके थे. उनकी अनुपस्थिति में यह ज़िम्मेदारी कार्डिनल एंजेलो कोमोस्त्री को सौंपी गई थी. हालांकि, प्रार्थना समाप्त होने पर वे बेसिलिका की लॉलिया बालकनी पर briefly प्रकट हुए थे, जहां मौजूद लोगों ने भावुक स्वागत किया था.
बचपन से एक फेफड़े के सहारे जीवित रहे
पोप फ्रांसिस के एक फेफड़े को युवावस्था में ही संक्रमण के कारण शल्य चिकित्सा द्वारा हटा दिया गया था. वे दशकों से एक ही फेफड़े के सहारे जी रहे थे. लेकिन डबल निमोनिया की वजह से उनका स्वास्थ्य निरंतर गिरता गया.
अंतिम इच्छा: वेटिकन के बाहर हो दफन
अपने जीवन में सादगी, सेवा और करुणा का प्रतीक रहे पोप फ्रांसिस ने एक साक्षात्कार में अपनी अंतिम इच्छा प्रकट की थी. उन्होंने कहा था कि वे वेटिकन सिटी के बजाय रोम की सेंट मैरी मेजर बेसिलिका में दफन होना चाहते हैं. उनके इस निर्णय का कारण ‘मदर ऑफ गॉड’ मैरी के प्रति उनका गहरा लगाव था. वे अक्सर विदेशी दौरे से लौटने के बाद सबसे पहले वहीं प्रार्थना करने जाते थे.
यदि यह इच्छा पूरी होती है, तो पोप फ्रांसिस एक सदी में पहले ऐसे पोप होंगे जिन्हें वेटिकन के बाहर दफन किया जाएगा.
इसे भी पढ़ें : jamshedpur : शरीयत को संविधान से बड़ा बताने वाले बयान पर भाजपाइयों ने किया डीसी ऑफिस पर विरोध प्रदर्शन