
जमशेदपुर: जमशेदपुर शहर से सटे ग्रामीण क्षेत्रों को नगर परिषद में शामिल करने की कवायद को लेकर स्थानीय प्रतिनिधियों और जनसामान्य में असंतोष गहराता जा रहा है. लोगों का कहना है कि इस निर्णय से पेसा कानून 1996 का खुला उल्लंघन होगा और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित ‘मुखिया पद’ जैसी परंपरागत लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं खत्म हो जाएंगी.
विचार नहीं, थोपे जा रहे हैं फैसले?
ग्रामीण प्रतिनिधियों — जैसे मुखिया, जिला परिषद सदस्य, वार्ड सदस्य, पंचायत समिति सदस्य — का कहना है कि किसी भी प्रकार का प्रस्ताव लाने से पहले जनप्रतिनिधियों और समाज के विभिन्न वर्गों से विचार-विमर्श होना चाहिए. बिना व्यापक संवाद के लिए कोई भी प्रशासनिक फैसला स्थानीय स्वशासन के अधिकारों को कमजोर करता है.
पेसा कानून के विरुद्ध नगर परिषद?
ग्रामीण क्षेत्रों में पेसा कानून 1996 लागू है, जिसके तहत ग्राम सभा को विशिष्ट अधिकार प्राप्त हैं और ‘मुखिया पद’ अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित होता है. यदि ग्राम पंचायतों को नगर परिषद में मिला दिया गया, तो इन अधिकारों का स्वतः क्षय हो जाएगा, जिससे आदिवासी स्वशासन की भावना को गहरा आघात पहुंचेगा.
नगर परिषद = नरक परिषद?
जमशेदपुर से सटे गांवों के लोग जुगसलाई नगर परिषद का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वहां की स्थिति देखकर डर लगता है. उनके अनुसार, नगर परिषद में शामिल होते ही ग्रामवासी कई नए करों और अनुमति प्रक्रियाओं के बोझ तले दब जाते हैं, जैसे:
होल्डिंग टैक्स का भुगतान
मकान निर्माण के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र की अनिवार्यता
नगर निकाय की स्वेच्छाचारी नियमावलियों का पालन
विशेष फंड से भी हो सकता है विकास
ग्रामीणों का कहना है कि सरकार चाहे तो बिना पंचायतों को नगर परिषद में मिलाए विकास के लिए विशेष फंड उपलब्ध करवा सकती है. पंचायतों को नगरीय क्षेत्र में शामिल करना कोई एकमात्र विकल्प नहीं है.
नगर परिषद गठन की कानूनी प्रक्रिया
पंचायतों को नगर परिषद में शामिल करने की प्रक्रिया में सरकार को इन चरणों से गुजरना होता है:
प्रस्ताव – राज्य सरकार द्वारा तैयारी
विधायी प्रक्रिया – विधानसभा में पेश और पारित
विधेयक – कानूनी रूप से नगर परिषद की स्थापना हेतु प्रावधान
इस पूरी प्रक्रिया में विधानसभा की भूमिका निर्णायक होती है, जहां से अंतिम स्वीकृति मिलनी अनिवार्य है.
आदिवासी सुरक्षा परिषद करेगी विरोध
आदिवासी सुरक्षा परिषद (जमशेदपुर महानगर) ने साफ संकेत दिया है कि वह शहर के आसपास के पंचायतों को मिलाकर ‘ग्रेटर जमशेदपुर’ बनाने के किसी भी प्रशासनिक प्रस्ताव का कड़ा विरोध करेगी. परिषद पूरे झारखंड में पेसा कानून के पूर्ण क्रियान्वयन की मांग को लेकर सक्रिय है और इसे आदिवासी अस्मिता से सीधे जोड़कर देखती है.
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