
नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 10 जुलाई की तिथि तय की है. न्यायालय ने इन याचिकाओं को स्वीकार करते हुए कहा कि वह चुनाव आयोग के इस फैसले की वैधता पर उस दिन विचार करेगा.
पीठ ने सिब्बल की दलीलें सुनीं, सुनवाई को दी मंजूरी
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की ओर से याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सुनते हुए गुरुवार को इस मामले की सुनवाई पर सहमति जताई. सिब्बल ने कोर्ट से आग्रह किया कि निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया जाए. न्यायमूर्ति धूलिया ने इस पर टिप्पणी की – “हम इस मामले को गुरुवार को सुनेंगे.”
विपक्षी दलों की आपत्तियां और संवैधानिक चिंताएं
इस मामले में राजद सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, और गैर-सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने याचिकाएं दायर की हैं.
मनोज झा ने आरोप लगाया कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस तरह का विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया प्रारंभ करना निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया पर संदेह पैदा करता है. वहीं महुआ मोइत्रा ने चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन बताया है.
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मताधिकार से वंचित करने की आशंका
महुआ मोइत्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि यदि यह आदेश रद्द नहीं किया गया, तो इससे बड़ी संख्या में पात्र नागरिकों को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है. इससे लोकतंत्र और स्वतंत्र चुनाव की मूल भावना कमजोर होगी. उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि निर्वाचन आयोग को अन्य राज्यों में ऐसी प्रक्रिया लागू करने से रोका जाए.
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने बिहार में 24 जून को विशेष गहन पुनरीक्षण के निर्देश जारी किए थे. इसका उद्देश्य अपात्र नामों को हटाना और यह सुनिश्चित करना बताया गया है कि केवल योग्य मतदाता ही सूची में शामिल हों.
हालांकि, आयोग की मंशा और प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने सवाल उठाए हैं. इस प्रक्रिया को लेकर विपक्षी दलों और निर्वाचन आयोग के बीच बातचीत भी टल चुकी है.
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