
जमशेदपुर : बसंत ऋतु का आगमन प्रकृति को नवजीवन और उल्लास से भर देता है, नवपल्लव से सुसज्जित होकर प्रकृति ने ऋंगारित होकर बसन्त के आगमन का संदेश देती है। वहीं शहर के कला एवं संस्कृति के उद्गम का अनुपम केन्द्र साकची स्थित रबीन्द्र भवन में प्रकृति- प्रेम के श्रेष्ठ कवि गुरु रबीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाओं को लेकर बसंतोत्सव का आयोजन आज किया गया ।
संगीत एवं नृत्य का मंचन
जिसमें रबीन्द्र भवन, साकची में संचालित टैगोर स्कूल ऑफ आर्ट एवं टैगोर स्कूल ऑफ आर्ट सोनारी शाखा, कदमा शाखा, टेल्को, बारीडीह के लगभग 300 छात्र छात्राओं एवं शिक्षक शिक्षिकाओं ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम में रबीन्द्र नाथ टैगोर की ऋतुराज बसंत पर आधारित रचनाओं पर संगीत एवं नृत्य का मंचन हुआ, सन्यासी जे जागिलो, ओ चांद तुमार दोला, लावण्य पूर्णो प्राण, फागुनेर नवीन आनन्दे, एकटुकु छोआ लागे,आज खेला भांगार खेला, गीत पर नृत्य का मंचन छात्र-छात्राओं एवं शिक्षक-शिक्षिकाओं द्वारा अद्भुत रूप से किया गया।
होली खेली गई
प्रकृति के रंगों के उल्लास को समेटने के लिए बसन्तोत्सव कार्यक्रम में अबीर खेला हुआ। कार्यक्रम के पश्चात इस सम्बन्ध में जानकारी देते हुए इस कार्यक्रम की आयोजक संस्था टैगोर सोसाईटी के महासचिव आशीष चौधुरी ने बताया कि प्रत्येक वर्ष यह आयोजन प्रकृति प्रेम के साहित्य के अन्नय रचनाकार कविगुरु रबीन्द्र नाथ टैगोर की प्रकृति प्रेम से भरी रचनाओं के माध्यम से बसन्त उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
बसन्त आता है तो प्रकृति के समान ही रोम रोम नृत्य करता है
उन्होने कहा कि जिस प्रकार बसन्त के आगमन से प्रकृति का कण कण नृत्य करता हुआ प्रतीत होता है वैसे ही कविवर की रचना मनुष्य और प्रकृति का सामंजस्य रचती है और जब जीवन में बसन्त आता है तो प्रकृति के समान ही रोम रोम नृत्य करता है। उन्होने कहा कि यह महान कवि को उनकी रचनाओं के माध्यम से एक श्रद्धांजली भी है और नव पीढ़ि को प्रकृति के साथ कदम ताल मिलाकर चलने को प्रेरित करने का कार्यक्रम भी है।
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