
पोटका: पोटका प्रखंड के शंकरदा गांव में आज एक अहम प्रेस वार्ता आयोजित की गई, जिसमें बांग्ला भाषियों के साथ हो रहे सौतेले व्यवहार के खिलाफ तीव्र विरोध दर्ज किया गया. गांव के बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बांग्ला भाषा की पढ़ाई पर रोक और सांस्कृतिक स्मृतियों के मिटाए जाने को एक सुनियोजित साजिश बताया.
पूर्व जिला पार्षद एवं भाषा संग्राम के प्रमुख सिपाही करुणा मय मंडल ने इस अवसर पर स्पष्ट कहा कि बांग्ला भाषी समाज आज अपने अस्तित्व और अधिकार की लड़ाई के लिए सड़कों पर उतरने को विवश है.
दो बिंदुओं ने भड़काई आक्रोश की चिंगारी
मंडल ने कहा कि समूचे झारखंड के बांग्ला भाषी दो प्रमुख घटनाओं से विशेष रूप से आहत हैं:
शिक्षा मंत्री का विवादित बयान:
हाल ही में राज्य के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के दौरान कहा—
“पहले छात्र लाइए, तभी किताब और शिक्षक मिलेंगे.”
इस कथन को बांग्ला भाषी समाज ने अपमानजनक और असंवेदनशील बताया.
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी का नाम बदलना:
बिना पारदर्शी प्रक्रिया के, एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद् और स्वतंत्रता सेनानी के नाम को हटाना सामाजिक और ऐतिहासिक अपमान के रूप में देखा जा रहा है.
“बिना किताब और शिक्षक के, छात्र कहाँ से आएंगे?”
पूर्व पार्षद करुणा मय मंडल ने व्यथित स्वर में पूछा कि जब पिछले 25 वर्षों से बांग्ला की पढ़ाई किताबों और शिक्षकों की कमी के कारण बंद है, तो क्या छात्रों की उपस्थिति स्वाभाविक रूप से संभव है? उन्होंने कहा कि जब तक शासन द्वारा पाठ्यपुस्तकें और शिक्षक नियुक्त नहीं किए जाते, तब तक किसी भी भाषा में शिक्षा को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता.
“क्या यह न्याय है कि मूलवासी भाषा को ही मिटा दिया जाए?”
मंडल ने इस बात पर भी गहरा क्षोभ जताया कि जिस झारखंड राज्य की स्थापना आदिवासी और मूलवासी अधिकारों की रक्षा के लिए हुई थी, उसी राज्य में उनकी मूल भाषा बांग्ला को योजनाबद्ध तरीके से नष्ट किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि आज भी बांग्ला भाषी समाज बांग्ला पंचांग, रामायण, महाभारत, लक्ष्मी चरित्र, सत्यनारायण व्रत कथा, टुसू गीत, बांदना गीत, विवाह गीत, हरिनाम संकीर्तन और नाट्यकला को अपनी मातृभाषा में ही जीवित रखे हुए हैं. इतनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को मिटाने का प्रयास निंदनीय है.
“श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम को हटाना क्या उचित है?”
दूसरे बिंदु पर मंडल ने स्पष्ट किया कि वे सभी स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करते हैं, चाहे वे किसी भी क्षेत्र के हों. लेकिन डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम हटाकर किसी अन्य का नाम स्थापित करना क्या राजनीतिक, सामाजिक या नैतिक दृष्टिकोण से उचित है?
“यह भाषा और अस्तित्व की लड़ाई है, पीछे हटना नहीं है”
प्रेस वार्ता के अंत में करुणा मय मंडल ने उपस्थित बुद्धिजीवियों और ग्रामीणों से आह्वान किया कि यह केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी पहचान, संस्कृति और सम्मान की लड़ाई है. हमें संगठित होकर उग्र आंदोलन के माध्यम से ही अपने अधिकारों की रक्षा करनी होगी.
एक स्वर में उठी आवाज़: आंदोलन को और धार देने की ज़रूरत
इस अवसर पर ग्राम प्रधान विनय कृष्ण दास, डॉ. प्रभाकर मंडल, गणेश चंद्र भकत, समीर कुमार गोप, राधा बल्लभ मंडल, अनिल कांत भकत, किशोर कुमार भकत, रमेश चंद्र गोप, तुषार कांति गोप, आकुल चंद्र मंडल, मलय कुमार भकत, अभिषेक गोप, नकुल चंद्र गोप समेत अनेक बुद्धिजीवी मौजूद थे. सभी ने एकमत होकर राज्य सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना की और मातृभाषा के आंदोलन को और धारदार बनाने की आवश्यकता पर बल दिया.
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