
नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 80(1)(क) के खंड (3) के तहत राज्यसभा के लिए चार प्रतिष्ठित व्यक्तियों को मनोनीत किया है. इनमें प्रसिद्ध सरकारी वकील उज्ज्वल देवराव निकम, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं शिक्षाविद् सी. सदानंदन मास्टर, भारत के पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और इतिहासकार मीनाक्षी जैन के नाम शामिल हैं.
यह नामांकन पूर्व में नामित सदस्यों की सेवानिवृत्ति के बाद खाली हुई सीटों को भरने के उद्देश्य से किया गया है.
किस विशेषता के लिए चुने गए हैं ये चारों?
भारत के राष्ट्रपति संविधान के अनुसार राज्यसभा में 12 ऐसे सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं, जो कला, साहित्य, विज्ञान या सामाजिक सेवा जैसे क्षेत्रों में विशेष योग्यता रखते हों. इन चारों व्यक्तियों का चयन इन्हीं मापदंडों को ध्यान में रखते हुए किया गया है.
उज्ज्वल निकम: कानून की दुनिया का प्रतिष्ठित नाम
सरकारी वकील उज्ज्वल देवराव निकम ने अपने करियर में कई हाई प्रोफाइल मामलों की पैरवी की है. 26/11 मुंबई आतंकी हमलों में अजमल कसाब के मुकदमे में उनका पक्ष विशेष रूप से चर्चित रहा. इसके अलावा 1993 बॉम्बे विस्फोट जैसे मामलों में भी वे प्रमुख सरकारी वकील रहे.
साल 2024 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें मुंबई उत्तर मध्य लोकसभा सीट से उम्मीदवार भी बनाया था.
हर्षवर्धन श्रृंगला: भारत की कूटनीति के अनुभवी रणनीतिकार
पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत के महत्वपूर्ण प्रतिनिधि रहे हैं. वे अमेरिका, बांग्लादेश और थाईलैंड में भारत के राजदूत रह चुके हैं.
इसके अतिरिक्त उन्होंने 2023 में भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान मुख्य समन्वयक की भूमिका निभाई थी.
सी. सदानंदन मास्टर: जिन्होंने हिंसा से नहीं मानी हार
केरल से संबंध रखने वाले सी. सदानंदन मास्टर सामाजिक सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय हैं. वे भाजपा के सक्रिय सदस्य हैं और एक समय में शिक्षक भी रह चुके हैं.
25 जनवरी 1994 को राजनीतिक हिंसा के दौरान उन पर माकपा कार्यकर्ताओं ने जानलेवा हमला किया था, जिसमें उनके दोनों पैर काट दिए गए थे. इसके बावजूद उन्होंने सार्वजनिक जीवन से दूरी नहीं बनाई.
मीनाक्षी जैन: इतिहास और शिक्षा में गंभीर शोध की पहचान
डॉ. मीनाक्षी जैन एक प्रतिष्ठित इतिहासकार और शिक्षाविद् हैं. वे दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज में इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर रह चुकी हैं. भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक विमर्श पर उनके कई लेखन कार्य विद्वानों और शिक्षाविदों के बीच विशेष रूप से प्रशंसित हैं.
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