
सरायकेला: चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में वन अधिकार कानून 2006 के तहत वर्षों से लंबित पड़े सामुदायिक और व्यक्तिगत दावों के निष्पादन को लेकर वन अधिकार समिति ने प्रशासन को अंतिम चेतावनी दी है।
बीते दिनों चांडिल अनुमंडल पदाधिकारी की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में यह खुलासा हुआ कि पूर्व अनुमंडल पदाधिकारी रोहित मुर्मू के पास से वह आलमारी की चाबी प्राप्त हो चुकी है जिसमें सामुदायिक और व्यक्तिगत वन अधिकार दावा पत्र जमा हैं। वर्तमान पदाधिकारी ने आश्वासन दिया कि यह आलमारी जल्द खोली जाएगी और दावों का निष्पादन किया जाएगा।
वन अधिकार समिति और ग्राम सभाओं ने दो टूक कहा है कि यदि सोमवार, 14 जुलाई 2025 तक आलमारी नहीं खोली गई और दावा पत्रों की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई, तो वे मजबूरन आंदोलन का रास्ता अपनाएँगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि उस स्थिति में प्रशासन ही जिम्मेदार होगा।
इस चेतावनी में गांगुडीह, माकूलाकोचा, गुटिउली, टुईडूंगरी, सुक्सारी, रेयारदा, बाघाडीह समेत कोल्हान संगठन की ग्राम सभाएँ शामिल हैं।
गणराज्य लोक समिति (कोल्हान) की ओर से बताया गया कि 2018 से 2025 तक कई बार वन अधिकार कानून के तहत आवेदन दिए गए, परंतु आज भी अधिकांश दावों पर कोई कार्यवाही नहीं हो पाई है। कुल 54 ग्राम सभाओं में से केवल 12 ग्राम सभाओं को ही अधिकार पत्र जारी हुए हैं।
बैठक में यह भी सवाल उठा कि ईचागढ़, नीमडीह और चांडिल प्रखंडों के दावों के साथ वन विभाग की धारा जोड़ दी गई है, जबकि केंद्र सरकार द्वारा ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया गया है। समिति ने इसे “वन अधिकार कानून में जबरन छेड़छाड़” करार देते हुए तत्काल संशोधन की मांग की है।
इस बैठक में वन अधिकार समिति के अध्यक्ष देबूराम मांझी, खीरोद सोरेन, बलराम सिंह, देवनाथ हेंब्रम, शिवचरन सिंह, गुरुवा मुंडा, सालुमानी सरदार तथा संगठन की ओर से बृहस्पति सिंह सरदार सहित कई प्रतिनिधि उपस्थित रहे। सभी ने एकमत होकर दावा पत्रों के त्वरित निष्पादन की मांग की।
लगातार हो रही अनदेखी और प्रशासनिक उदासीनता से वन अधिकार समिति और ग्रामीण संगठनों का विश्वास डगमगाता नजर आ रहा है। अब प्रशासन के सामने चुनौती है – एक ओर पुराने दावों को समय पर निपटाना, तो दूसरी ओर संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करना।
इसे भी पढ़ें : Jadugora: पूर्वजों की जमीन ऑनलाइन कराने के लिए 3 सालों से प्रखंड कार्यालय के चक्कर काट रहे JLKM नेता