
गुवा: श्री-श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी के सिद्धांतों और उनके संदेशों को मानव जीवन के लिए जीवनदायिनी बताते हुए सत्संगी अरुप कुमार डे ने कहा कि ईश्वर प्राप्ति और जीवंत जीवन जीने का विधान ठाकुर जी के सतनाम, यजन, याजन, ईष्टवृत्ति, स्वस्त्ययन और सदाचार के अनुपालन से संभव है।
उन्होंने कहा कि श्री-श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी स्वयं पुरुषोत्तम के रूप में अवतरित हुए, जिन्होंने मानव जाति के जीवन और मृत्यु के रहस्यों को स्पष्ट किया।
अरुप कुमार डे ने कहा कि ठाकुर जी से पहले जितने भी पुरुषोत्तम हुए, उन्होंने सृष्टि को नियमबद्ध तरीके से संचालित किया। परंतु उनके उपरांत जो भी आए, उन्होंने अपने-अपने ढंग से धर्म की व्याख्या की, जिससे धर्म में विकृति और भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई।
इस स्थिति को दूर करने के लिए ठाकुर जी ने ‘आचार्य परंपरा’ की शुरुआत की, ताकि धर्म का शुद्ध स्वरूप समाज के सामने प्रस्तुत हो सके और भावी पीढ़ियों को स्पष्ट दिशा मिले। अरुप कुमार डे ने बताया कि ठाकुर जी के बताए मार्ग पर चलना और उनके द्वारा दिए गए दीक्षा मंत्र ‘सतनाम’ को ग्रहण करना ही आत्मिक उन्नति का मूल साधन है।
मनुष्य केवल दुःख में ईश्वर को पुकारता है, परंतु ठाकुर जी का मार्ग यह सिखाता है कि हर क्षण प्रभु स्मरण और लोककल्याण के लिए समर्पित होना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि दीक्षा लेना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि श्री-श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी को अपने जीवन में आत्मसात करने और उनके अनुशासन को स्वीकारने का संकल्प है।अरुप कुमार डे ने अंत में कहा कि श्री-श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी का संपूर्ण जीवन स्वयं एक संदेश है, जो मानव हृदय के परिवर्तन और समाज के उत्थान के लिए प्रेरक बना रहेगा। जो व्यक्ति ठाकुर जी के सिद्धांतों और मार्ग का अनुसरण करता है, वह न केवल अपने जीवन को सुव्यवस्थित करता है, बल्कि समाज के लिए भी कल्याणकारी पथ प्रशस्त करता है।
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