
रामगढ़: गर्मी की इस भीषण दोपहरी में जब तापमान 40 डिग्री के पार है, तब रामगढ़ जिले के मांडू प्रखंड स्थित नोनिया बेड़ा गाँव के आदिवासी परिवार पानी की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वर्षों पहले जिस नल-जल योजना की आस में ग्रामीणों की आंखों में चमक आई थी, आज वही योजना उनके लिए एक असफल वादा बनकर रह गई है।
जलमिनार बना शोपीस, नल से आज तक नहीं टपका पानी
करीब तीन साल पहले आदिवासी बहुल नोनिया बेड़ा में “हर घर नल से जल” योजना के तहत जलमिनार का निर्माण हुआ था। शुरुआत में ग्रामीणों में उम्मीद की लहर दौड़ी। हर घर में नल लगाए गए। लेकिन अफसोस की बात यह रही कि इन नलों से आज तक एक बूंद पानी नहीं निकला। लाखों की लागत से बना जलमिनार अब जर्जर होने की कगार पर है, और गाँव के लोग फिर से पुराने समय की तरह नदी किनारे बनाए गए “चुंवा” (छोटे गड्ढे) से पानी लाने को विवश हैं।
आदिवासी महिलाएं हर रोज तय करती हैं लंबी दूरी
पानी की तलाश में आदिवासी महिलाएं सुबह, दोपहर और शाम—हर वक़्त बर्तन लेकर निकल जाती हैं। कई किलोमीटर की दूरी तय कर नदी किनारे चुंवा से पानी लाना उनका रोज़मर्रा बन गया है। उनका कहना है कि बारिश के दिनों में चुंवा का पानी दूषित हो जाता है, फिर भी मजबूरी में वही पीना पड़ता है।
“ठेकेदार गया, पर पानी की समस्या रह गई”
ग्रामीणों का कहना है कि जलमिनार बनाने वाला ठेकेदार निर्माण के बाद चला गया। न पाइपलाइन चालू हुई, न जलापूर्ति शुरू हुई। सरकार की योजनाएं सिर्फ कागज़ पर साकार हुईं, ज़मीन पर नहीं। ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि इस जलमिनार को दुरुस्त कर जलापूर्ति बहाल की जाए।
विभागीय अभियंता ने दिलाया भरोसा
इस पूरे मामले पर जब पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, रामगढ़ के कार्यपालक अभियंता सुरेन्द्र कुमार दिनकर से बात की गई तो उन्होंने कहा, “मैंने हाल ही में पदभार संभाला है। यह मामला मेरे संज्ञान में आया है और मैं जल्द ही इसकी जांच कराऊंगा। यदि किसी संवेदक द्वारा लापरवाही बरती गई है, तो उस पर उचित कार्रवाई की जाएगी।”
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