
जमशेदपुर: श्रीरामचरितमानस के अयोध्याकांड में गोस्वामी तुलसीदास जी ने मां गंगा की महिमा को गाते हुए कहा है –
‘गंग सकल मुद मंगल मूला, सब सुख करनि हरनि सब सूला’
अर्थात गंगा समस्त सुखों और मंगलों की जड़ हैं. वे दुखों का नाश करती हैं और आनंद का संचार करती हैं. पुराणों के अनुसार, राजा भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर मां गंगा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को पृथ्वी पर अवतरित हुईं.
गंगा का जल न केवल जीवनदायिनी है, बल्कि उसे अमृत और मोक्षदायिनी भी कहा गया है. यह केवल एक नदी नहीं, बल्कि आस्था की हजारों वर्षों की धारा है, जो भारतीय जनमानस की आत्मा से जुड़ी हुई है.
गंगा दशहरा: स्वर्ग से धरती पर अवतरण का स्मरण
गंगा दशहरा, ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मनाया जाने वाला एक विशेष पर्व है. इस दिन गंगा के स्वर्ग से धरती पर अवतरण की स्मृति की जाती है. ऐसा माना जाता है कि गंगा पहले शिव की जटाओं में 32 दिनों तक वास करती रहीं. फिर भगवान शिव ने अपनी एक जटा खोली और गंगा जी धरती पर उतर पड़ीं. राजा भगीरथ ने हिमालय से मैदान तक गंगा का मार्ग बनवाया और अपने पितरों को तर्पण देकर मुक्ति दिलाई.
2025 में गंगा दशहरा कब?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष गंगा दशहरा 5 जून 2025 (गुरुवार) को मनाया जाएगा. दशमी तिथि की शुरुआत 4 जून की रात 11:54 बजे से होगी और समापन 6 जून को रात 2:15 बजे तक होगा.
इस दिन रवि योग और सिद्धि योग का दुर्लभ संयोग भी बन रहा है. रवि योग पूरे दिन रहेगा, जबकि सिद्धि योग सुबह 9:14 तक. इस योग में स्नान, दान और पूजा करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है.
पर्व की विधि: पूजा, स्नान और साधना
गंगा दशहरा के दिन गंगा तट पर जाकर स्नान करना, दान देना, पूजा करना और गंगा आरती करना अत्यंत शुभ माना जाता है. यह संभव न हो तो घर पर ही स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें. इसके बाद मां गंगा की विधिपूर्वक पूजा करें, भजन-कीर्तन करें और दीपदान करें.
मान्यता है कि इस दिन मां गंगा की उपासना करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है और पुराने पापों से मुक्ति प्राप्त होती है.
क्यों करें 10 वस्तुओं का दान?
गंगा दशहरा पर ‘दशहरा’ शब्द की प्रतीकात्मकता है ‘दश पापों का हरण’. इस दिन 10 प्रकार की वस्तुओं का दान करने की परंपरा है. जैसे-
10 फल, 10 पंखे, 10 घड़े (सुराही), 10 छाते, 10 प्रकार के अन्न इत्यादि. यह दान पितृ संतोष के लिए भी अत्यंत फलदायक माना गया है.
पितरों को कैसे करें प्रसन्न?
यदि गंगा तट तक जाकर स्नान और तर्पण करना संभव न हो, तो घर पर ही यह उपाय करें –
स्नान जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें.
सफेद फूल और काले तिल लेकर पितरों को अर्पण करें.
‘पितृ चालीसा’ का पाठ करें.
संध्या को पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाकर पितृ दीपदान करें.
यह उपाय करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और घर में शांति व समृद्धि का वास होता है.
गंगा दशहरा केवल एक पर्व नहीं, आत्मशुद्धि और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा की गहरी अभिव्यक्ति है. यह हमें प्रकृति, संस्कृति और पुरखों से जोड़ने वाला वह सेतु है जो पवित्रता, त्याग और तपस्या से बना है. इस गंगा दशहरा, आइए हम स्वयं को मां गंगा के चरणों में समर्पित करें और उनके अमृत रूपी जल से आत्मा को शुद्ध करें.
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