
नई दिल्ली: इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने शुक्रवार, 13 जून को ईरान के खिलाफ किए गए सैन्य अभियान को “एक बहुत ही सफल प्रारंभिक हमला” बताया है।
इस हमले में ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’ के तहत ईरान के परमाणु ठिकानों, मिसाइल बेस और सैन्य परिसरों को निशाना बनाया गया। इस दौरान ईरान के कई वरिष्ठ सैन्य कमांडर और प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक मारे गए।
नेतन्याहू ने कहा, “ईश्वर की कृपा से हमने एक मजबूत शुरुआत की है और हम आगे और भी बड़ी सफलताएं प्राप्त करेंगे।”
वैश्विक कूटनीति में हलचल: कौन किसके साथ?
इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव ने विश्व राजनीति में स्पष्ट ध्रुवीकरण ला दिया है।
इजरायल का समर्थन करने वाले देश:
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, चेक गणराज्य, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड
ईरान का समर्थन करने वाले देश:
रूस, चीन, मिस्र, तुर्की, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, इराक, ओमान, सऊदी अरब, कतर, संयुक्त अरब अमीरात, लेबनान, जॉर्डन, हौथी, हमास, अफगानिस्तान
तटस्थता और शांति की अपील करने वाले देश व संस्थाएं:
संयुक्त राष्ट्र, भारत, जापान, आयरलैंड, अफ्रीकी संघ, यूरोपीय संघ, इटली
संयुक्त राष्ट्र: परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला चिंता का विषय
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता फरहान हक ने बयान जारी कर कहा कि महासचिव क्षेत्र में किसी भी तरह की सैन्य वृद्धि की निंदा करते हैं।
गुटेरेस ईरान के परमाणु ठिकानों पर हुए हमले को अत्यधिक चिंता का विषय मानते हैं, विशेष रूप से तब जब अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत चल रही है।
IAEA: परमाणु स्थलों पर हमला विनाशकारी हो सकता है
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने चेतावनी दी कि “परमाणु सुविधाओं पर कभी भी हमला नहीं किया जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि ऐसी किसी भी सैन्य कार्रवाई से ईरान, क्षेत्र और पूरी दुनिया पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने सभी पक्षों से अत्यधिक संयम बरतने की अपील की है।
NATO का रुख: तनाव कम करने की आवश्यकता
नाटो महासचिव मार्क रूटे ने स्टॉकहोम में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि “अब समय है कि अमेरिका सहित इजरायल के सहयोगी तनाव कम करने की दिशा में कार्य करें।”
उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यह हमला इजरायल की एकतरफा कार्रवाई थी और क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डाल सकती है।
इजरायल-ईरान के बीच जारी यह संघर्ष न केवल मध्य पूर्व बल्कि वैश्विक शांति व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है।
दुनिया अब यह सवाल पूछ रही है — क्या यह महज ‘प्रारंभिक हमला’ है या एक लंबी और व्यापक जंग की भूमिका?
इस घटनाक्रम की आगामी कड़ियां अब वैश्विक संतुलन, ऊर्जा सुरक्षा, और कूटनीतिक समीकरणों को किस दिशा में ले जाएंगी — यह आने वाला समय तय करेगा।
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