
रांची: झारखंड का प्रमुख त्योहार करमा (कर्मा पूजा) आदिवासी संस्कृति और प्रकृति से गहराई से जुड़ा है। यह पर्व झारखंड, बिहार, ओडिशा और मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस साल करमा पूजा 3 सितंबर को आयोजित की जा रही है।
पूजा विधि और परंपरा
त्योहार से पहले घरों की अच्छी तरह सफाई होती है और पूजा स्थल को गोबर से लीपकर पवित्र किया जाता है। इसके बाद कर्म वृक्ष की डालियों को गाड़कर उनकी पूजा की जाती है। महिलाएं थाल सजाकर करम देव का पूजन करती हैं और अपने भाइयों की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और उन्नति की प्रार्थना करती हैं।
पूजा के दौरान कर्म और धर्म से जुड़ी लोककथाएं सुनाई जाती हैं, जिनमें अच्छे कर्मों का महत्व बताया जाता है। खास बात यह है कि विवाहित महिलाएं मायके आकर इस त्योहार को मनाती हैं। पूजा के बाद भाई, बहनों से व्रत का कारण पूछते हैं और खीरे के साथ उन्हें आशीर्वाद देते हैं।
करमा पर्व का महत्व
आदिवासी समाज में यह पर्व बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि अविवाहित कन्याएं इस दिन उपवास रखकर फसलों की रक्षा करती हैं और पूरे साल अच्छी पैदावार की कामना करती हैं। विश्वास है कि श्रद्धा और निष्ठा से व्रत करने वाली कन्याओं को योग्य पति मिलता है। इसके अलावा यह पर्व परिवार की भलाई, समृद्धि और संतान सुख की मंगलकामनाओं से भी जुड़ा हुआ है।
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