
जमशेदपुरः विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) का अनुमान है कि भारत में लगभग 1 साल में 5 अरब लीटर शराब पी जाती है. इसमें 40 प्रतिशत से ज्यादा अवैध तरीक से बनाई और बेची जाती है. एक सरकारी आंकड़े की मानें तो शराब पीने से भारत में हर साल करीब ढाई लाख लोग मर जाते हैं. इसके अलावा हजारों लोग जहरीली शराब पीने से भी मरते हैं. वहीं फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की रिपोर्ट के अनुसार भारत में अवैध शराब का कारोबार 23466 करोड रुपए का है. FICCI के मुताबिक अवैध शराब की तस्करी से सरकार को 15262 करोड़ रुपए के राजस्व के नुकसान का अनुमान है. वहीं अगर झारखंड की बात करें तो केवल पूर्वी सिंहभूम जिला में ही वित्तीय वर्ष 2022-23 में कुल 300 करोड़ रुपये की शराब की बिक्री हुई थी. मतलब साफ है कि देश में शराब का कारोबार बढ़िया से फल फूल रहा है. समाज में लगातार बढ़ते शराब सेवन के कारण अपराधिक गतिविधियों में भी वृद्धि हुई है.
सरकार के पास नहीं है शराब पीने वालों का आकड़ा
सरकार को जहां शराब के बिक्री से करोड़ों रुपये की राजस्व की प्राप्ति हो रही है. वहीं सरकार के पास शराब पीने वालों का कोई अधिकारिक आकड़ा उपलब्ध नहीं है. एक बेहतर और विकसित समाज के निर्माण के लिए यह जरुरी है कि सरकार देश में नशापान व शराब के सेवन को नियंत्रित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 47 और राष्ट्रीय नशापान निषेध अधिनियम 1919 के तहत पूरे भारत में नशापान पर सख्त कानून लागू करने के साथ ही नशापान करने के लिए लाइसेंस अनिवार्य करने का प्रावधान लाए. इससे जहां सरकार के पास नशापान करने वालों का सही आकड़ा मौजूद होगा वहीं लाइसेंस फीस से सरकार को राजस्व की प्राप्ति भी होगी. इस संबंध में स्वंय सेवी संगठन बाल मजदूर मुक्ति सेवा संस्थान के संयोजक सदन ठाकुर ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिख कर नशापान करने वालों के लिए लाइसेंस अनिवार्य करने की मांग की है. ठाकुर का मानना है कि सरकार द्वारा नशापान करने वालों के लिए लाइसेंस अनिवार्य करने से जहां खुलेआम शराब पीने वालों पर पाबंदी लगेगी वहीं लाइसेंस फीस से सरकार को राजस्व के तौर पर मोटी रकम बी प्राप्त होगी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देश में शराब पीने वालों का सही आकड़ा भी सरकार के पास होगा.
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