
सरायकेला: रविवार को श्री जगन्नाथ मेला समिति की बैठक में एक बार फिर इतिहास रचा गया. मनोज कुमार चौधरी को सर्वसम्मति से लगातार 18वीं बार अध्यक्ष चुना गया. बैठक में उपाध्यक्ष गोविंद साहू, सचिव छोटेलाल साहू, सांस्कृतिक सचिव रूपेश साहू एवं संदीप कवि की नियुक्ति की गई. नवचयनित अध्यक्ष को सभी सदस्यों ने बधाई दी और चौधरी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह मेला केवल सांस्कृतिक नहीं, बल्कि हमारी धार्मिक परंपरा और आस्था का जीवंत संगम है.
इस वर्ष रथयात्रा मेला की अवधि चार दिन बढ़ाकर 14 दिन कर दी गई है. मेला 27 जून को प्रभु श्रीजगन्नाथ की रथयात्रा से आरंभ होगा. रथ रात्रि विश्राम के बाद 28 जून को मौसीबाड़ी (गुंडीचा मंदिर) पहुंचेगा. 28 जून से मेला विधिवत प्रारंभ होगा जो 10 जुलाई तक चलेगा.
मेले में बच्चों के लिए बिजली झूला, नौका झूला, ब्रेक डांस, मिकी माउस, खिलौनों की दुकानें तथा अन्य मनोरंजनात्मक गतिविधियां होंगी. महिलाओं के लिए मीना बाजार लगाया जाएगा. साथ ही खाद्य सामग्री, घरेलू उपयोग व पूजा-सामग्री की दुकानों से पूरा मेला क्षेत्र सजाया जाएगा.
मेला क्षेत्र के मुख्य मार्ग कोर्ट मोड़ से थाना चौक तक मांस एवं अंडा बिक्री पर पूर्णतः प्रतिबंध रहेगा. मेला समिति ने श्रद्धालुओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए यह निर्णय लिया है.
रथयात्रा मेला में विशाल देवसभा का आयोजन किया जाएगा, जिसमें गरुड़ वाहन पर विराजमान लक्ष्मी-नारायण की प्रतिमा, विभिन्न देवी-देवताओं की झांकियां और धार्मिक लीलाओं का प्रदर्शन किया जाएगा. मूर्तिकारों द्वारा प्रतिमाएं तैयार करने का कार्य अंतिम चरण में है. गुंडीचा मंदिर का रंग-रोगन भी पूर्ण हो चुका है.
सरायकेला के गुंडीचा मंदिर में एक अद्वितीय परंपरा का निर्वहन होता है, जहां प्रभु जगन्नाथ के विग्रहों को विभिन्न वेशभूषा में सजाकर श्रद्धालुओं के लिए प्रस्तुत किया जाता है. वर्तमान में सुशांत महापात्र के निर्देशन में यह विशेष दर्शन व्यवस्था तैयार की जा रही है.
सांस्कृतिक सचिव रूपेश साहू ने बताया कि मेला के दौरान गुंडीचा मंदिर प्रांगण में सांस्कृतिक संध्या आयोजित की जाएगी. इसकी रूपरेखा अंतिम चरण में है, जहां क्षेत्रीय कलाकारों को भी मंच मिलेगा.
बैठक में भोला मोहंती, राकेश महांती, पंडित सानो आचार्य, अमिताभ मुखर्जी, शंभू आचार्य, सौरभ साहू, गणेश महतो, दीपक महतो, सुदीप कवि, बल्लू मोदक, रितिक साहू सहित सैकड़ों सदस्य उपस्थित रहे. सभी ने रथयात्रा मेला को सद्भावना, परंपरा और सामाजिक एकता का प्रतीक बताते हुए इसके सफल आयोजन की प्रतिबद्धता जताई.
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