
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों द्वारा किए गए वीभत्स हमले में 27 निर्दोष नागरिकों की जान जाने के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंधों में नया तनाव पैदा हो गया है.
हमले की निंदा करने के बजाय पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के प्रमुख और पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने सार्वजनिक मंच से भारत को खुली धमकी दे डाली.
भड़काऊ बयान: “या तो पानी बहेगा या खून”
सिंधु नदी के किनारे एक सभा को संबोधित करते हुए बिलावल भुट्टो ने कहा – “या तो हमारा पानी इस नदी से बहेगा या फिर उनका खून इसमें बहेगा. सिंधु हमारी है और रहेगी.” उनके इस बयान को सीधे तौर पर भारत के खिलाफ हिंसा भड़काने वाला और उकसाने वाला माना जा रहा है, खासकर ऐसे वक्त में जब पूरा देश पहलगाम की त्रासदी से आहत है.
भारत की सख़्ती: सिंधु जल संधि की समीक्षा
भारत ने बिलावल भुट्टो के बयान और पहलगाम हमले को गंभीरता से लेते हुए सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार की प्रक्रिया तेज़ कर दी है. 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से बनी यह संधि तीन पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – के पानी के इस्तेमाल को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐतिहासिक समझौता रही है. अब भारत ने इसे “स्थगित करने की दिशा में ठोस कदम” उठाते हुए संधि की समीक्षा के लिए विश्व बैंक से पुन: विचार विमर्श शुरू कर दिया है.
पाकिस्तान की राजनीतिक भाषा में युद्ध का स्वर
भुट्टो यहीं नहीं रुके. उन्होंने भारत को “सिंधु पर हमला करने वाला” बताया और कहा – “भारत की जनसंख्या भले ज़्यादा हो, लेकिन हम बहादुर हैं. हम सीमाओं पर और देश के भीतर लड़ने के लिए तैयार हैं.” इस बयान से स्पष्ट है कि पाकिस्तान का राजनीतिक नेतृत्व आतंकवाद के मुद्दे पर आत्मनिरीक्षण करने के बजाय उग्र राष्ट्रवाद का सहारा ले रहा है. इससे शांति वार्ता की संभावनाएं और धुंधली हो गई हैं.
वीज़ा रद्द और राजनयिक संदेश
भारत ने पहलगाम हमले के बाद कई कूटनीतिक कदम उठाए हैं. इनमें पाकिस्तानी नागरिकों के वीज़ा रद्द करने, कुछ को स्वदेश वापसी के निर्देश देने, और सीमा पर निगरानी बढ़ाने जैसे निर्णय शामिल हैं. इस संदर्भ में सिंधु जल संधि को “रणनीतिक औजार” के रूप में प्रयोग करना, भारत की बदलती कूटनीतिक सोच को दर्शाता है – अब आतंकी हमलों का जवाब केवल सुरक्षा मोर्चे पर नहीं, जल, व्यापार और वैश्विक मंचों पर भी दिया जाएगा.
अब आगे क्या?
बिलावल भुट्टो का बयान और भारत की कड़ी प्रतिक्रिया यह संकेत दे रही है कि आने वाले समय में भारत-पाक संबंधों में और गिरावट आ सकती है.
क्या सिंधु जल संधि पर भारत निर्णायक फैसला लेगा?
क्या यह पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति को और अस्थिर करेगा?
और क्या विश्व बैंक इस विवाद में कोई निर्णायक भूमिका निभाएगा?
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर दिखा दिया कि पानी और राजनीति का रिश्ता जितना पुराना है, उतना ही विस्फोटक भी.
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