
जमशेदपुर: मईया सम्मान योजना के अंतर्गत पोटका प्रखंड में मंगलवार को आयोजित डीबीटी त्रुटि निवारण शिविर में उस समय अफरातफरी और निराशा का माहौल देखने को मिला, जब कई ऐसे लाभुक महिलाएं भी खाली हाथ लौटीं, जिनके बैंक खाते और दस्तावेज़ पूरी तरह से सही थे. शिविर से लौटते समय उनके चेहरों पर केवल एक ही सवाल था – “जब सब कुछ ठीक है, तो पैसा क्यों नहीं?”
प्रखंड द्वारा पूर्व में जारी की गई सूची में ऐसे नाम भी शामिल थे, जिनके डीबीटी सिस्टम में कोई त्रुटि नहीं है. सूचना मिलते ही सैकड़ों महिलाएं – जिनमें कई छोटे बच्चों को लेकर आई थीं, तो कई वृद्ध और विधवा थीं – अपने घरेलू कार्य और खेतीबाड़ी छोड़कर शिविर पहुंचीं. घंटों इंतज़ार के बाद जब जांच हुई, तो बैंक कर्मियों ने उनके दस्तावेज़ों पर ‘ओके’ लिख भी दिया, फिर भी उन्हें यह नहीं बताया गया कि सम्मान राशि क्यों नहीं मिली.
हेंसलबिल की धनमुनी सोरेन सुबह 10 बजे से अपनी बच्ची को साथ लिए शिविर में मौजूद रहीं. जांच में उनके दस्तावेज़ पूरी तरह सही पाए गए. बावजूद इसके, न पैसा मिला और न कोई स्पष्ट जवाब. कोई कह रहा था – “सबका डीबीटी हो जाएगा तो भेजेगा”, तो कोई बोला – “अभी भेजा नहीं गया है”. ऐसी आधी-अधूरी बातों ने लोगों को और भी भ्रमित और मायूस कर दिया.
पूर्व जिला पार्षद करुणामय मंडल ने शिविर में मौजूद रहते हुए स्वयं ऐसी महिलाओं की शिकायतें सुनीं. उन्होंने कहा कि यह बहुत स्पष्ट हो गया है कि केवल डीबीटी में त्रुटि ही भुगतान न होने का कारण नहीं है. जब से 7500 रुपये की एकमुश्त राशि दी गई थी, तभी से कई लाभुकों के खाते में पैसे आने बंद हो गए हैं. ऐसे में यह सवाल उठता है कि सरकार वाकई सभी मईयाओं को सम्मान देना चाहती है या केवल नाम भर का आयोजन कर रही है?
मंडल ने सुझाव दिया कि भविष्य में ऐसे शिविर प्रखंड स्तर पर नहीं, बल्कि पंचायत स्तर पर लगने चाहिए. साथ ही, वहां सिर्फ डीबीटी जांच न हो, बल्कि यह भी देखा जाए कि किसे कब से पैसा नहीं मिला और क्यों नहीं मिला. हर लाभुक की समस्या का समयबद्ध समाधान कर उन्हें बकाया राशि के साथ सम्मान मिलना चाहिए. अन्यथा, यह प्रक्रिया महिलाओं के लिए “सम्मान” नहीं, बल्कि “असम्मान” बन कर रह जाएगी.
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