World Tribal Day 2025: आदिवासी दिवस पर जानिए साहस, बलिदान और गौरव की अमर कहानियाँ – धरती आबा से द्रौपदी मुर्मू तक! जिन्होंने बदला इतिहास

रांची:  भारत के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज़ादी के बाद तक, आदिवासी समुदायों ने देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना जगाने में अद्वितीय भूमिका निभाई है। इन वीरों ने न सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लिया, बल्कि अपने जल, जंगल, ज़मीन और संस्कृति की रक्षा के लिए भी असाधारण साहस और बलिदान दिया। इस विश्व आदिवासी दिवस पर आइए, उन महान नायकों को याद करें जिनका संघर्ष आज भी प्रेरणा देता है।

बिरसा मुंडा – धरती आबा का ‘उलगुलान’
15 नवंबर 1875 को खूंटी जिले के उलिहातू में जन्मे बिरसा मुंडा ने 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश शासन और जमींदारी प्रथा के खिलाफ ऐतिहासिक ‘उलगुलान’ (महाविद्रोह) किया। उनके संघर्ष के बाद ही अंग्रेजों ने छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (CNT Act) बनाया। केंद्र सरकार उनकी जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाती है।

तिलका मांझी – पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी
1750 में संताल परगना में जन्मे तिलका मांझी ने 1784-85 में ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह किया और अफसर क्लीवलैंड की हत्या कर आज़ादी की चेतना जगाई। उन्हें पहला आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है।

सिदो-कान्हू मुर्मू – हूल क्रांति के वीर
1855 में संताल परगना के सिदो और कान्हू मुर्मू ने अंग्रेजों और जमींदारों के खिलाफ हूल क्रांति छेड़ी। उनके आंदोलन ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी और इसके बाद संताल परगना टेनेंसी एक्ट (SPT Act) लागू हुआ।

टंट्या भील – ‘भीलों के मामा’
1842 में जन्मे टंट्या भील मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में सक्रिय रहे। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाकर अंग्रेजों का धन लूटा और गरीबों में बांटा। 1889 में अंग्रेजों ने उन्हें फांसी दे दी।

वीर नारायण सिंह – छत्तीसगढ़ के पहले शहीद
1856-57 में वीर नारायण सिंह ने गरीबों के हक के लिए अंग्रेजी अनाज गोदाम लूटे। वे छत्तीसगढ़ के पहले शहीद बने।

बुधू भगत – कोल विद्रोह के नेता
1832-33 के कोल विद्रोह का नेतृत्व झारखंड के उरांव योद्धा बुधू भगत ने किया। वे आखिरी सांस तक आदिवासी अधिकारों के लिए लड़े।

रानी गाइदिन्ल्यू – पूर्वोत्तर की ‘रानी मां’
1932 में नगालैंड/मणिपुर की रानी गाइदिन्ल्यू ने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया। उन्हें ‘रानी मां’ कहा जाता है।

अल्लूरी सीताराम राजू – ‘रामपपा’ विद्रोह के नायक
1922 में आंध्रप्रदेश में अल्लूरी सीताराम राजू ने आदिवासी क्षेत्रों में अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा विद्रोह किया। उनकी वीरता आज भी लोककथाओं में जिंदा है।

अन्य महान नायक
जतरा टाना भगत – गांधी के अनुयायी, अहिंसा और खादी के प्रतीक।

कोमुरम भीम – तेलंगाना में आदिवासी अधिकारों के लिए आंदोलन।

तिरोत सिंह – मेघालय के खासी विद्रोह के नेता।

राघोजी भांगरे – महाराष्ट्र में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष।

मालती मीम – असम के चाय बागान श्रमिक आंदोलन की नेता।

लक्ष्मण नायक – ओडिशा के गांधीवादी आंदोलनकारी।

रानी दुर्गावती – मुगलों के खिलाफ लड़ी वीरांगना।

आज़ादी के बाद के आदिवासी नायक
द्रौपदी मुर्मू – भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति (2022)।
जयपाल सिंह मुंडा – हॉकी कप्तान, झारखंड राज्य के प्रणेता।
पीए संगमा – पूर्व लोकसभा अध्यक्ष, राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार।
शिबू सोरेन – ‘दिशोम गुरु’, झारखंड अलग राज्य आंदोलन के नेता।
कार्तिक उरांव – आदिवासी समाज के शिक्षित और प्रभावशाली नेता।
डॉ. रामदयाल मुंडा – संस्कृति संरक्षक और झारखंड आंदोलन के रणनीतिकार।

 

 

इसे भी पढ़ें : Jharkhand: विश्व आदिवासी दिवस पर CM सोरेन को फिर आई पिता की याद, कहा – बाबा सशरीर साथ नहीं हैं, मगर…..

 

Spread the love
  • Related Posts

    Ghatsila : बिना प्रशिक्षण की अनोखी मिसाल : पहाड़पुर के लुगु मुर्मू की कला ने सबको किया प्रभावित

    गरीब परिवार का प्रतिभाशाली बेटा, अपनी प्राकृतिक पेंटिंग कला से बना चर्चा का केंद्र घाटशिला : घाटशिला प्रखंड के बाघुडिया पंचायत स्थित पहाड़पुर गांव के 18 वर्षीय लुगु मुर्मू इन…

    Spread the love

    Jamshedpur : हेमंत सरकार के एक साल बेमिसाल पर झामुमो नेताओं ने आतिशबाजी और लड्डू वितरण कर मनाया जश्न

    घाटशिला उप चुनाव में जीत और सरकार के कामकाज की सफलता का उत्सव जमशेदपुर : साकची गोलचक्कर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने हेमंत सरकार के…

    Spread the love

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *