
वाराणसी: काशी एक बार फिर भारत की सांस्कृतिक एकता और धार्मिक सौहार्द का प्रतीक बन गई. गुरुपूर्णिमा के अवसर पर रामानंदी संप्रदाय के प्राचीन पातालपुरी मठ में गुरुवार को ऐसी छवि उभरी, जिसने समूचे देश को प्रेम, शांति और एकता का संदेश दिया.
इस पावन अवसर पर मुस्लिम महिलाओं ने पातालपुरी मठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु बालक देवाचार्य जी महाराज की आरती उतारी और तिलक लगाकर उनका स्वागत किया. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उन्हें रामनामी अंगवस्त्रम् ओढ़ाकर सम्मानित किया.
जगद्गुरु बालक देवाचार्य जी ने कहा कि गुरुपूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि शिष्य के समर्पण और आत्मिक परिवर्तन का प्रतीक है. उन्होंने कहा, “गुरु के बताए मार्ग पर चलकर ही लोक कल्याण, पारिवारिक एकता और देशभक्ति की भावना साकार होती है. जीवन की प्रत्येक सफलता गुरु के आशीर्वाद से ही संभव है.”
पातालपुरी मठ भारत की गुरु परंपरा का सजीव उदाहरण बना, जब सैकड़ों मुस्लिम भाई-बहनों ने गुरुदीक्षा लेकर भारत की संस्कृति की सेवा का संकल्प लिया. जगद्गुरु ने उन्हें बताया कि रामपंथ कोई धर्म परिवर्तन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण है, जिसमें करुणा, दया, शांति और एकता का भाव निहित है.
उन्होंने स्पष्ट किया, “रामपंथ में सभी का स्वागत है. यहां न कोई भेद है, न मनाही. अखंड भारत भूमि पर जन्मे सभी लोग संस्कृति, परंपरा और रक्त से एक हैं. हमें बांटा नहीं जा सकता.”
जगद्गुरु ने समाज को चेताया कि अब कट्टरपंथी विचारधाराएं समाज को स्वीकार्य नहीं. उन्होंने कहा, “धर्म के नाम पर हिंसा करना अधर्म है. राम का नाम प्रेम, दया और शांति का दर्शन है. जब तक दुनिया राम के मार्ग पर नहीं चलेगी, तब तक स्थायी शांति संभव नहीं.”
गुरुदीक्षा पाने वालों में शहाबुद्दीन तिवारी, मुजम्मिल, फिरोज, अफरोज, सुल्तान, नगीना, शमशुनिशा जैसे मुस्लिम श्रद्धालु शामिल थे. शहाबुद्दीन तिवारी ने कहा, “हमारे पूर्वज रामपंथी थे. पूजा पद्धति बदली है, लेकिन हमारी परंपरा और संस्कृति नहीं.”
नौशाद अहमद दूबे ने गुरु परंपरा को भारतीय संस्कृति की आत्मा बताया. उन्होंने कहा, “जिसके पास ज्ञान है, वही गुरु है. वहां भेद की कोई जगह नहीं.”
मुस्लिम महिला फाउंडेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष नाजनीन अंसारी ने कहा, “गुरु के बिना राम तक पहुंचा नहीं जा सकता. गुरु ही अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला मार्ग है. राम का रास्ता ही दुनिया में शांति ला सकता है.”
इस अवसर पर जगद्गुरु बालक देवाचार्य जी ने आदिवासी समाज के बच्चों को भी दीक्षित किया और उन्हें भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी सौंपी. उन्होंने मुस्लिम समाज के लोगों से भी आग्रह किया कि वे अपने पूर्वजों से जुड़ें और भारत की गौरवशाली परंपरा को विश्वभर में फैलाएं.
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