
नई दिल्ली: झारखंड से भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे ने एक बार फिर नेहरू-गांधी परिवार को निशाने पर लिया है. उन्होंने 1978 के कुछ दस्तावेज़ साझा करते हुए आरोप लगाया है कि यह परिवार अमेरिका के सामने नतमस्तक था. इस दावे के बाद राजनीतिक हलकों में गर्मागर्म बहस छिड़ गई है.
क्या है दुबे का दावा?
दुबे द्वारा साझा किए गए दस्तावेजों में 1960 के दशक में भारत में अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA की गतिविधियों का जिक्र है. उनके अनुसार, हिमालय की ऊंचाई पर चीन के परमाणु परीक्षणों पर नजर रखने के लिए दो परमाणु ऊर्जा चालित निगरानी उपकरण लगाए गए थे. इनमें से एक प्लूटोनियम युक्त यंत्र कथित रूप से नंदा देवी क्षेत्र में लगाया गया था, जो गंगा नदी के उद्गम स्थल के निकट स्थित है.
दुबे ने यह भी सवाल उठाया कि,
“क्या 1960 में नंदा देवी पर्वत से गायब हुआ अमेरिकी न्यूक्लियर यंत्र 2013 के केदारनाथ हादसे का कारण बना? क्या तीस्ता नदी की बाढ़ और हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने का कारण भी यही है?”
कांग्रेस का तीखा जवाब
दुबे के दावों पर पलटवार करते हुए कांग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने तीखा व्यंग्य किया. उन्होंने कहा,
“निशिकांत दुबे को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) में भेज देना चाहिए. वहां उनकी भूमिका अधिक सार्थक होगी.”
सांसद भगत ने यह भी कहा कि जब देश अंतरिक्ष, तकनीक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तब कुछ लोग “गड़े मुर्दे उखाड़ने” में लगे हैं. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि कुछ नेता नेहरू-गांधी फोबिया से ग्रसित हैं.
ऐतिहासिक दस्तावेज़ या राजनीतिक हथियार?
निशिकांत दुबे द्वारा साझा किया गया दस्तावेज़ 1978 का बताया जा रहा है, जिसमें भारत सरकार की जानकारी के बिना CIA द्वारा निगरानी यंत्र लगाने की बात कही गई है. यह मामला पर्यावरण, राष्ट्रीय संप्रभुता और राजनीति से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसे वर्तमान की राजनीति में किस उद्देश्य से उठाया जा रहा है, यह सवाल अब सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गया है.
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