
पटमदा: पटमदा के किसान सब्जी उत्पादन में माहिर माने जाते हैं, लेकिन इस बार टमाटर की खेती में उन्हें भारी नुकसान झेलना पड़ा. बाजार में टमाटर के दाम इतने गिर गए कि पाँच रुपये किलो में भी ग्राहक नहीं मिल रहे. किसानों को मजबूरी में अपनी फसल खेत में ही छोड़नी पड़ी.
रसिक मांडी ने शुरू की कसावा की खेती
ऐसी स्थिति में नुकसान की भरपाई के लिए डोगाडीह गांव के किसान रसिक मांडी ने अपने एक बीघा टमाटर लगे खेत में कसावा (शिमुल आलू) की खेती शुरू की. इसके पहले उन्होंने शुगर-फ्री शकरकंद की भी खेती की थी. बुधवार को उन्होंने कसावा की रोपाई आटी पुआल मशरूम प्रा. लि. (बंदोवान) के एमडी एवं कृषि विशेषज्ञ डॉ. अमरेश महतो तथा दीनबंधु ट्रस्ट के महासचिव नागेंद्र कुमार की उपस्थिति में की.
क्या है कसावा और क्यों है लाभदायक?
कसावा एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल है, जिसे सूखी, अनुपजाऊ और पथरीली मिट्टी में भी आसानी से उगाया जा सकता है. यह फसल अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के कई देशों में लोकप्रिय है. कम पानी में भी पनपने वाले इस पौधे को ऊर्जा और पोषण का अच्छा स्रोत माना जाता है.
कसावा की खासियत:
अत्यधिक पौष्टिक, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, फाइबर से भरपूर.
पाचन को सुधारता है और गैस, एसिडिटी जैसी समस्याओं को कम करता है.
इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो बालों और त्वचा के लिए फायदेमंद हैं.
मधुमेह के मरीजों के लिए भी लाभदायक.
पशुपालकों के लिए इसका पत्ता उपयोगी चारा साबित हो सकता है.
बाजार में भी बढ़ रही मांग
कृषि विशेषज्ञ डॉ. अमरेश महतो ने बताया कि कसावा की फसल से किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं. यह अपेक्षाकृत कम लागत में उगाई जा सकती है और इससे बने उत्पादों की स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अच्छी मांग है. शिमुल आलू से साबूदाना, चिप्स, पापड़, आटा, स्टार्च जैसे कई उत्पाद बनाए जाते हैं.
एक साल में दो फसल, बेहतर मुनाफा
कसावा की फसल साल में दो बार होती है और एक पेड़ से 8-10 किलो तक उपज मिलती है. इसका प्रसंस्करण उद्योग में भी उपयोग होता है, जिससे किसान इसे व्यवसायिक रूप से उगाकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, भविष्य में शिमुल आलू किसानों के लिए एक बड़ा आर्थिक सहारा बन सकता है.
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