
खड़गपुर: दक्षिण पूर्व रेलवे के निर्माण विभाग एवं खड़गपुर मंडल ने संतरागाछी जंक्शन पर 533 रूटों के साथ यार्ड रिमॉडलिंग और इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (ईएल) की कमीशनिंग का कार्य सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है. यह कार्य 18 मई को पूर्ण हुआ, जो कि एनआई (नॉन-इंटरलॉकिंग) कार्य का अंतिम दिन था.
वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में पूर्ण हुआ ऐतिहासिक कार्य
इस उपलब्धि के अंतिम क्षणों में राजीव श्रीवास्तव (सीएओ/निर्माण, जीआरसी), के.आर. चौधरी (डीआरएम, खड़गपुर) तथा मंडल एवं मुख्यालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी संतरागाछी स्टेशन पर उपस्थित थे.
तीन चरणों में हुआ यार्ड रिमॉडलिंग का कार्य
रेलवे ने इस कार्य को चरणबद्ध ढंग से सम्पन्न किया.
30 अप्रैल से 12 मई तक 13 दिनों तक ‘प्री-टू-प्री एनआई’ कार्य
13 मई से 17 मई तक 5 दिनों तक ‘प्री-एनआई’ कार्य
18 मई को 7 घंटे के ट्रैफिक ब्लॉक में अंतिम चरण की ‘कमीशनिंग’
मानव श्रम और तकनीक का अद्भुत समन्वय
इस व्यापक कार्य में सैकड़ों मानव-घंटों की मेहनत, सटीक परीक्षण और उच्च स्तर की योजना शामिल रही. आमतौर पर ऐसे कार्यों में ट्रेनों की भारी देरी और रद्द होने जैसी समस्याएं आती हैं, लेकिन इस बार अभिनव योजना और ट्रैफिक ब्लॉक प्रबंधन के चलते यात्रियों को न्यूनतम असुविधा हुई.
इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग से क्या बदलेगा?
इस नई व्यवस्था से निम्नलिखित प्रमुख बदलाव संभव हुए हैं:
दो नए प्लेटफार्म संतरागाछी में जोड़े गए हैं
मौजूदा प्लेटफार्मों का विस्तार हुआ है, जिससे लंबी मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों को भी आसानी से प्रवेश मिल सकेगा
डायमंड क्रॉसिंग समाप्त की गई है, जिससे संचालन अधिक निर्बाध होगा
सतही क्रॉसिंग का उन्मूलन संकराइल रेलवे पुल से संतरागाछी तक लाइन की सतह पार करने की आवश्यकता अब नहीं रही, जिससे डाउन लाइन की ट्रैफिक गति बढ़ेगी
‘माउस और कीबोर्ड’ से सिग्नल नियंत्रण, छह क्षेत्रों में वितरित इंटरलॉकिंग
नई ईएल प्रणाली को छह क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जो अत्यंत विश्वसनीय ऑप्टिकल फाइबर केबल से जुड़े हैं. इस प्रणाली में वीडियो डिस्प्ले यूनिट (VDU) के माध्यम से “माउस और कीबोर्ड” से रूट सेटिंग और सिग्नल क्लियरिंग की सुविधा दी गई है.
समयबद्धता और गति में होगा बड़ा सुधार
इस नई व्यवस्था से दक्षिण पूर्व रेलवे में मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों की औसत गति में वृद्धि और समयबद्धता में सुधार होगा. प्लेटफॉर्म की संख्या और लंबाई में हुए विस्तार से पहले की तुलना में अधिक ट्रेनों को समुचित प्लेटफॉर्म पर स्थान दिया जा सकेगा.
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