काठमांडू: नेपाल ने महज 5 दिनों में हिंसा, आगजनी और सत्ता परिवर्तन का ऐसा दौर देखा जो इतिहास में शायद ही पहले कभी हुआ हो। सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ 8 सितंबर को GenZ आंदोलन शुरू हुआ, और अगले ही दिन यह हिंसक हो गया। संसद, सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री आवास, राजनीतिक दलों के दफ्तर और काठमांडू का सिंह दरबार तक जलाकर राख कर दिया गया।
ओली का इस्तीफा और संसद भंग
हालात बिगड़ने के बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पद छोड़ना पड़ा और देश छोड़ना पड़ा। 12 सितंबर को संसद भंग कर दी गई। इसी दिन पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की को नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने राष्ट्रपति भवन शीतल निवास में उन्हें शपथ दिलाई।
GenZ सरकार से बाहर, लेकिन नियंत्रण बरकरार
GenZ नेताओं ने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होकर समर्थन जताया, लेकिन सरकार में कोई पद नहीं लिया। तय हुआ कि सुशीला कार्की भले ही प्रधानमंत्री रहेंगी, पर असली फैसले GenZ एडवाइजरी ग्रुप की सलाह से होंगे।
बातचीत कैसे बनी सहमति
9 सितंबर को तख्तापलट के बाद सेना ने देश की सुरक्षा संभाली और प्रदर्शनकारियों से बातचीत शुरू की। तीन दौर की बैठकों के बाद 12 सितंबर को राष्ट्रपति भवन में अंतिम सहमति बनी। शुरुआत में GenZ सिर्फ काठमांडू के मेयर बालेन शाह को पीएम बनाना चाहते थे, लेकिन उन्होंने अंतरिम सरकार से किनारा कर लिया। आखिरकार उनके सुझाए नाम सुशीला कार्की पर सब राजी हो गए।
बालेन शाह का रोल
बालेन शाह ने साफ कहा कि वे 6 महीने बाद चुनाव के जरिए जनता का समर्थन लेकर पीएम बनना चाहते हैं। फिलहाल वे पर्दे के पीछे से सुशीला कार्की और GenZ ग्रुप को सलाह देंगे। सेना के साथ उनके करीबी रिश्तों ने भी सहमति बनाने में अहम भूमिका निभाई।
आर्मी की मध्यस्थता
आर्मी चीफ जनरल अशोक राज सिगडेल ने प्रदर्शनकारियों को बातचीत की मेज पर लाने और अस्थायी सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई। सेना ने न सिर्फ कानून-व्यवस्था संभाली बल्कि सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया भी सुनिश्चित की।
अन्य दावेदार और सियासी नाराजगी
सुशीला कार्की से पहले इंजीनियर सुदन गुरंग, बिजली बोर्ड के पूर्व प्रमुख कुलमान घिसिंग और धरान के मेयर हर्क सामपांग भी दावेदारी में थे, लेकिन सहमति नहीं बन सकी। वहीं ओली की पार्टी ने संसद भंग करने के फैसले का विरोध किया और इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
संविधान के तहत नया प्रयोग
अब तक सभी सरकारें संविधान के आर्टिकल-76 के तहत बनी थीं, लेकिन सुशीला कार्की को आर्टिकल-61 के तहत पीएम नियुक्त किया गया। इसमें राष्ट्रपति को संविधान की रक्षा की जिम्मेदारी दी गई है, और इसी प्रावधान से अस्थायी सरकार बनी।
आगे क्या?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अभी नेपाल में अस्थिरता बनी रहेगी। नई सरकार का असली इम्तिहान यह होगा कि वह कितनी जल्दी और ईमानदारी से अगले चुनाव कराती है। GenZ ने इस बार आंदोलन रोककर सरकार को मौका दिया है, लेकिन सबकी निगाहें इस पर होंगी कि सरकार कितनी पारदर्शिता से काम करती है।
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