
बहरागोड़ा: झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के संगम स्थल बहरागोड़ा में यात्रियों की सुविधा के लिए 2013 में दो करोड़ रुपये की लागत से बस टर्मिनल बनाया गया था। उद्देश्य था कि तीनों राज्यों के यात्रियों को एक बेहतर और सुरक्षित इंतजार स्थल मिले। लेकिन आज यह परियोजना उपेक्षा की भेंट चढ़कर खंडहर में बदल चुकी है।
सुविधाओं का टोटा
टर्मिनल में न तो बिजली की सुविधा है और न ही पानी की।
अंधेरा और असुरक्षा: बिजली कनेक्शन न होने से शाम ढलते ही टर्मिनल अंधेरे में डूब जाता है। बसें भीतर नहीं आतीं, जिससे यात्रियों को सड़क किनारे इंतजार करना पड़ता है।
पानी की समस्या: पांच महीने से सोलर वाटर प्यूरीफायर खराब पड़ा है, जो पानी का एकमात्र स्रोत था।
जर्जर विश्रामलय: यात्री विश्रामलय की हालत इतनी खराब है कि लोग वहां बैठने से भी कतराते हैं।
सुरक्षा गार्ड की कोई व्यवस्था नहीं है। नतीजतन शाम के बाद यहां जाना लोग असुरक्षित मानते हैं। साफ-सफाई के अभाव में परिसर गंदगी से पटा रहता है और शौचालय भी पूरी तरह बदहाल है।
यात्रियों को सुविधा भले न मिल रही हो, लेकिन बस टर्मिनल से रोजाना राजस्व वसूली होती है। यह जिम्मेदारी अंचल प्रशासन की है। सवाल यह है कि जब वसूली हो रही है तो सुविधाओं पर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा।
बिजली और सुरक्षा न होने से शाम 5 बजे बाद टर्मिनल बंद कर दिया जाता है। इसके कारण भुवनेश्वर और कोलकाता जैसे शहरों को जाने वाले यात्रियों को एनएच-18 के ओवरब्रिज पर बसों का इंतजार करना पड़ता है।
करोड़ों का प्रोजेक्ट बना “सफेद हाथी”
दो करोड़ की लागत से बना यह टर्मिनल यात्रियों की मदद करने के बजाय सरकार और प्रशासन की लापरवाही का प्रतीक बन गया है। स्थानीय लोग इसे पूरी तरह विफल परियोजना बताते हैं।
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