नई दिल्ली: भाजपा नेता सीआर केसवन ने दावा किया है कि 1937 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ में बदलाव किया। केसवन का कहना है कि उस समय महाराष्ट्र के फैजपुर में आयोजित इंडियन नेशनल कांग्रेस के अधिवेशन में देवी दुर्गा के स्तुति वाले श्लोक हटा दिए गए थे।
कांग्रेस ने सांप्रदायिक कारण बताकर छंद हटाए
केसवन ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने ये कदम कुछ सांप्रदायिक समूहों को खुश करने के लिए उठाया। उन्होंने कहा कि केवल पहले दो छंद स्वीकार किए गए, जबकि देवी दुर्गा का आह्वान करने वाले बाद के श्लोक हटा दिए गए। भाजपा प्रवक्ता ने वंदे मातरम की तुलना पीएम मोदी द्वारा आयोजित 150वें स्मरणोत्सव से की। इस समारोह में वंदे मातरम का पूर्ण संस्करण सामूहिक रूप से गाया जाएगा।
नेहरू और नेताजी का विरोध और समर्थन
केसवन ने दावा किया कि नेहरू ने 20 अक्टूबर 1937 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि गीत की पृष्ठभूमि मुसलमानों को “चिढ़ा सकती है”। वहीं, सुभाष चंद्र बोस ने वंदे मातरम के पूर्ण और मूल संस्करण का समर्थन किया। नेहरू ने लिखा कि वंदे मातरम राष्ट्रीय गीत के रूप में उपयुक्त नहीं है और इसमें भाषा की कठिनाई है।
देवी के श्लोक हटाना ‘ऐतिहासिक भूल’
केसवन ने कहा कि कांग्रेस ने वंदे मातरम में देवी दुर्गा के भक्तिपूर्ण श्लोक हटाकर ‘ऐतिहासिक पाप और भूल’ की है। उन्होंने इसे कांग्रेस की सांप्रदायिक नीति और विचारधारा का परिणाम बताया।
पीएम मोदी ने भी उठाई बात
केसवन के बयान के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 1937 के फैजपुर अधिवेशन में किए गए वंदे मातरम संशोधन की आलोचना की। पीएम मोदी ने कहा कि उस समय गीत के महत्वपूर्ण पदों को अलग कर दिया गया, जिससे देश के विभाजन के बीज बोए गए। उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी के लिए यह जानना जरूरी है कि ऐसा अन्याय क्यों हुआ।
वंदे मातरम का इतिहास
‘वंदे मातरम’ भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में बंकिम चंद्र चटोपाध्याय के उपन्यास ‘आनंदमठ’ से लिया गया। इसे राष्ट्रीय एकता और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत का प्रतीक माना जाता है। 1937 में कांग्रेस के फैजपुर अधिवेशन में केवल पहले दो छंद गाए गए, क्योंकि देवी दुर्गा का संदर्भ होने से कुछ मुसलमानों ने आपत्ति जताई।