Deoghar : स्मार्ट सर्फ व लेसिक तकनीक चश्मा हटाने का सबसे एडवांस तरीका : डॉ. भारती कश्यप

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नेत्र रोग विशेषज्ञों के वार्षिक सम्मेलन में तकनीकी सत्रों का हुआ आयोजन

देवघर : झारखंड आप्थोमोलॉजिकल सोसाइटी और संताल परगना आप्थाल्मिक फोरम के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित नेत्र रोग विशेषज्ञों के 22 वें वार्षिक सम्मेलन के तीसरे दिन मैहर गार्डेन में नवीनतम तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। मौके पर रिफ्रेक्टिव सर्जन व कश्यप मेमोरियल आई हॉस्पिटल रांची की डायरेक्टर डॉ. भारती कश्यप ने चश्मा हटाने की सुरक्षित विधि और चीरा रहित स्मार्ट सर्फ लेजर तकनीक के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि स्मार्ट पल्स लेजर तकनीक पर आधारित स्मार्ट सर्फ एवं स्मार्ट लेसिक आज के दौर में आंखों से चश्मा हटाने की सबसे ज्यादा एडवांस्ड लेजर तकनीकी है। अपनी 1050 एचजेड पुनरावृति दर एवं सात डाइमेंशनल आई ट्रैकिंग के साथ स्विंड अमारिस मशीन पर स्मार्ट सर्फ सतह उपचार एवं स्मार्ट लेसिक पारंपरिक लेजर उपचारों की तुलना में असाधारण उच्च गति एवं परिशुधता की लेजर प्रणाली है। स्मार्ट पल्स टेक्नोलॉजी ट्रीटमेंट से कॉर्निया की मॉडलिंग बहुत चिकनी होती है। उत्कृष्ट परिणाम के लिए लेजर प्रक्रिया के दौरान आंखों की स्थिर एवं गतिशील अवस्था में सही जगह पर लेजर फायर की जाती है और उस समय को भी कम करता है, जिसके दौरान मरीज को लेजर के समय हरी बत्ती पर नजर रखना होता है। ज्यादा सिलेंडर पावर वाले मरीजों में यह काफी बेहतर परिणाम देता है। माइनस पावर के साथ-साथ प्लस पॉवर का भी उपचार इससे संभव है।

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कॉर्निया की कई बीमारियों का भी इलाज संभव

डॉ. भारती कश्यप ने कहा कि एलवी प्रसाद आई हॉस्पिटल हैदराबाद के द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार लेजर सतह उपचार स्माइल एवं लेसिक से ज्यादा सुरक्षित है। आजकल स्मार्ट पल्स तकनीक का उपयोग लेजर सतह उपचार के लिए बेहतर रिजल्ट दे रहा। अपेक्षाकृत ज्यादा पावर, सिलिंडर पॉवर एवं पतले कॉर्निया में स्माइल लेजर नहीं हो सकता है और एक बार लेजर होने के बाद दोबारा ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ने पर इसे नहीं किया जा सकता है। प्लस पावर का ट्रीटमेंट भी स्माइल तकनीक से नहीं किया जा सकता है। इस तकनीक से कॉर्निया की कई बीमारियों जैसे केराटॉकोनस आदि का भी उपचार होता है। मौैके पर अखिल भारतीय नेत्र सोसाइटी के सचिव डॉ. संतोष होनावर ने आंखों के कैंसर रेटिनोब्लास्टोमा के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यह ज्यादातर छोटे बच्चों में आमतौर पर 3 वर्ष की आयु से पहले होता है। यह कैंसर 5 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों में शायद ही कभी विकसित होता है। रेटिनोब्लास्टोमा आंख की रेटिना में बनता है। इस कैंसर का इलाज बहुत अधिक संभव है। समय पर बीमारी की पहचान और इलाज शुरू होने से 95 प्रतिशत मरीज ठीक हो सकते हैं। सम्मेलन में आयोजन समिति के मुख्य संयोजक डॉ. एनडी मिश्रा, डॉ. एनसी गांधी, डॉ. कुमार विजय, डॉ. कुमार मधुप, डॉ. अभिषेक ओमकार, डॉ. मंजूषा झा, डॉ. एसके मित्रा, डॉ. रजनीकांत सिन्हा, नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. बीपी कश्यप, डॉ. ललित वर्मा, डॉ. नम्रता शर्मा, डॉ. मनोज माथुर समेत पूरे झारखंड से आए 100 से अधिक नेत्र रोग चिकित्सक मौजूद थे।

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