
गम्हरिया. गम्हरिया प्रखंड के नारायणपुर पंचायत के विजय तरण आश्रम के संस्थापक रामानंद सरस्वती राम बाबा के महानिर्वाण तिथि पर कई धार्मिक कार्यकर्मों का आयोजन होगा. राम बाबा 23 वर्ष पूर्व यानि 18 जनवरी 2002 को आश्रम में समाधि लिये थे. इसको लेकर उक्त तिथि को आश्रम में अखंड महामंत्र नाम संकीर्तन तथा साधु सेवा भंडारा का आयोजन किया जायेगा. 1978 में वे गम्हरिया प्रखंड के विजय ग्राम आये थे और संजय नदी तट पर श्मशान के समक्ष विजय तरण आश्रम की स्थापना कर रहने लगे.
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भक्त उनकी समाधि स्थल पर मत्था टेकते है
इस बीच आश्रम का काफी विकास हुआ. भक्तों की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई. करीब 24 वर्ष आश्रम में रहने के बाद 18 जनवरी 2002 को उन्होंने समाधि ले ली. बाबा के प्रति लोगों में इतनी आस्था है कि आज भी बाबा के भक्त आश्रम में आकर उनकी समाधि स्थल पर मत्था टेकते हैं. फिलहाल आश्रम का संचालन राम बाबा के मुख्य भक्त बाबा मृत्युंजय ब्रह्मचारी करते हैं. राम बाबा का मूल मंत्र नमो नारायण: था. उनके भक्त व रामबाबा आश्रम में पहुंचने वाले श्रद्धालु आज भी नमो नारायणः कहकर ही एक दूसरे को संबोधित करते है.
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1952 में ढाका से राजनगर पहुंच करवाया मंदिर निर्माण
रामानंद सरस्वती राम बाबा का जन्म एक सौ साल पहले ओड़िशा के भद्रक जिला अंतर्गत अपनडा गांव में रामनवमी के दिन हुआ था. इसकी वजह से मां-पिताजी ने उनका नाम रामो रखा था. पांच वर्ष की उम्र में रामो ने घर छोड़ दिया. इस दौरान वे नारदानंद सरस्वती के आश्रम सगारी मठ में जाकर दस साल तक रहे. वहां उनका नाम आत्म विभूति रामानंद सरस्वती रखा गया, जहां से राम बाबा हरिद्वार चले गये. वहां जगतगुरु शंकराचार्य चौक पर स्थित साधना सदन में रहने लगे. इसके पश्चात कई धार्मिक स्थलों के भ्रमण के बाद वे अपने एक गुरु भाई के साथ हिमालय की यात्रा पर निकल गये.
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राम बाबा पर यज्ञ में नरबलि देने का लगा था आरोप
इस दौरान रास्ते में किसी बात को लेकर गुरु भाई ने राम बाबा के साथ मारपीट की तथा राम बाबा को मरणासन्न स्थिति में छोड़ वहां से चले गये. तब भेड़ चराने वालों की नजर उनपर पड़ी, तो उन्हें उठा कर लाये और काठमांडू में उनका उपचार कराया गया. स्वस्थ होने पर राम बाबा को ढाका भेज दिया गया. राम बाबा 1952 में राजनगर के बाना टांगरानी आये और मंदिर निर्माण कर एक बड़ा यज्ञ कराया, जो आज भी जारी है. उस वक्त गांव के दो बालक लापता हो गए थे, तो ग्रामीणों ने राम बाबा पर यज्ञ में नरबलि देने का आरोप लगाया. अपने ऊपर लगे आरोपों को राम बाबा ने खंडन करते हुए दोनों बच्चों को खोज निकाला. खोज के दौरान एक बालक इलाहाबाद में और एक बालक अयोध्या में मिला. 1975 में ओड़िशा के चक्रतीर्थ मठ गये. 1978 में विजय पहुंच आश्रम की स्थापना किये थे.
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