
नई दिल्ली: 22 जून को प्रातः 6:19 बजे सूर्य मृगशिरा से आर्द्रा नक्षत्र में गोचर करेंगे और 6 जुलाई को प्रातः 5:47 बजे तक इसी नक्षत्र में स्थित रहेंगे। इस दौरान सूर्य मिथुन राशि में रहेंगे, जहां पहले से विराजमान गुरु के साथ उनका संयोग ‘गुरुआदित्य योग’ का निर्माण करेगा।
ज्योतिष के अनुसार, आर्द्रा नक्षत्र में सूर्य का गोचर एक अत्यंत संवेदनशील समय होता है। यह वह अवधि है जब पृथ्वी को “रजस्वला” माना जाता है। इसीलिए न केवल कृषि कार्य रोके जाते हैं, बल्कि पृथ्वी की विशेष पूजा-अर्चना भी की जाती है।
क्या होता है गुरुआदित्य योग का प्रभाव?
गुरु और सूर्य के मिलन से बना गुरुआदित्य योग ज्ञान, वैभव और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक माना जाता है। मिथुन राशि में यह योग बनने से बुद्धि, संवाद और शिक्षा से जुड़े क्षेत्रों में बड़ी उन्नति के संकेत मिलते हैं।
इस योग का प्रभाव राशियों पर अलग-अलग पड़ेगा, पर विशेष रूप से 5 राशियों के लिए यह अवधि अत्यंत शुभ और परिवर्तनकारी सिद्ध हो सकती है।
आर्द्रा नक्षत्र में गोचर का सांस्कृतिक और भावनात्मक पक्ष
यह समय केवल खगोलीय परिवर्तन का नहीं, बल्कि मानवीय चेतना और भावनाओं में भी परिवर्तन का द्योतक होता है।
सूर्य का यह गोचर मानसून के आगमन की भविष्यवाणी करता है। यही कारण है कि भारत के कई भागों में इसे वर्षा ऋतु के आगमन की धार्मिक और सांस्कृतिक शुरुआत माना जाता है।
शरीर और मन के उपचार का समय
आर्द्रा नक्षत्र को शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण से भी जोड़ा जाता है। इस समय योग, ध्यान और व्यायाम के माध्यम से जीवनशैली को संतुलित करना लाभकारी होता है।
अतीत के मानसिक बोझ को त्यागकर एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने का यह उपयुक्त समय होता है। साथ ही, पेट और पाचन संबंधी समस्याओं से बचाव के लिए संतुलित भोजन आवश्यक है।
आर्द्रा नक्षत्र थाली: परंपरा में स्वाद और संवेदना
बिहार सहित कई राज्यों में आर्द्रा नक्षत्र के आगमन पर विशेष पारंपरिक भोजन तैयार किया जाता है, जिसे ‘आर्द्रा नक्षत्र की थाली’ कहा जाता है।
इसमें दाल पूरी, चावल की खीर, मौसमी सब्जियां और प्रसिद्ध मालदह आम शामिल होते हैं। यह भोज प्रकृति और मानसून के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है।
मानसून की दस्तक और नई उम्मीदें
आर्द्रा नक्षत्र का समय कृषि प्रधान भारत के लिए विशेष रूप से अहम होता है। यह काल किसान समुदाय के लिए नई आशा, उत्साह और समृद्धि लेकर आता है।
यह परिवार और समुदाय के साथ वर्षा ऋतु का स्वागत करने और सहयोग की भावना को पुनः जागृत करने का पर्व है।
संक्षेप में, सूर्य का आर्द्रा नक्षत्र में गोचर केवल खगोल विज्ञान की घटना नहीं, बल्कि भावनात्मक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण समय है।
यह काल परिवर्तन, पुनरुत्थान और प्रकृति से एकाकार होने का अवसर है।
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