
जमशेदपुर: पलाशबानी गाँव के सिरीघुटू चौक में स्थापित फूलो-झानो चौक की पथलगड़ी को असामाजिक तत्वों ने रात के अंधेरे में हटाकर संताल समाज की संस्कृति और गौरव पर एक और हमला किया. यह घटना न केवल शर्मनाक है, बल्कि आदिवासी समाज के इतिहास और एकता पर गहरा आघात है.
पिछला हमला और निरंतर अपमान
यह पहली बार नहीं है जब फूलो-झानो चौक पर हमला किया गया है. जून 2024 में भी कुछ असामाजिक तत्वों ने इस पवित्र स्थल को निशाना बनाया था. तब गाँव वालों ने एकजुट होकर पथलगड़ी को पुनः स्थापित किया था. लेकिन अब फिर से यह अपवित्रता देखने को मिली है, जो संताल समाज की सहनशक्ति को चुनौती दे रही है.
फूलो-झानो चौक: एक जीवंत प्रतीक
फूलो-झानो चौक का महत्व सिर्फ़ एक स्मारक तक सीमित नहीं है. यह संताल समाज के संघर्ष, संस्कृति और बलिदान का प्रतीक है. सन 2018 से पलाशबानी के लोग इस चौक पर हूल दिवस, स्वतंत्रता दिवस और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों को फूलो-झानो के नाम से मनाते आ रहे हैं. यह चौक, जिसे फूलो-झानो और सिदो-कान्हू के बलिदान की याद में स्थापित किया गया था, गाँव वालों को एकजुट करता है और उन्हें उनके पूर्वजों के संघर्ष की याद दिलाता है.
असामाजिक तत्वों की कुत्सित मंशा
कुछ लोग इस महत्वपूर्ण स्थल को नष्ट करने पर तुले हुए हैं. वे नहीं चाहते कि संताल समाज अपने शहीदों की स्मृति को जीवित रखे. उनके लिए यह चौक एक ऐसी शक्ति है जो समाज को जोड़ता है, और वे इसे नष्ट करके अपनी स्वार्थी मंशाओं को पूरा करना चाहते हैं. पलाशबानी के लोग इन लगातार हमलों से आहत हैं और महसूस कर रहे हैं कि यह सिर्फ़ एक पत्थर को हटाने की घटना नहीं है, बल्कि संताल समाज की अस्मिता पर एक घातक प्रहार है. उन्होंने कहा, “अगर हम आज फूलो-झानो के सम्मान के लिए नहीं लड़े, तो आने वाला कल न हमारी संस्कृति बचेगा, न हमारी जमीन.”
सामूहिक जागरूकता और एकता का आह्वान
यह सिर्फ़ पलाशबानी का नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी समाज की आवाज़ है. हमें उन तत्वों को पहचानने की आवश्यकता है जो हमारी संस्कृति और जमीन को लूट रहे हैं. अगर हम चुप रहते हैं, तो यह लोग हमारी पहचान को मिटा देंगे. हमें एकजुट होकर इस अन्याय के खिलाफ खड़ा होना होगा और हमारे वीर शहीदों के बलिदान को जीवित रखना होगा.
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