West Singhbhum: सारंडा की नदियाँ हो रही हैं पथरीली, पर्यावरण दिवस पर वन अधिकारी ने दी गंभीर चेतावनी

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पश्चिम सिंहभूम: विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर ससंगदा प्रक्षेत्र के किरीबुरू वन क्षेत्र पदाधिकारी शंकर भगत ने गहरी चिंता जताई कि वर्तमान समय में वृक्षारोपण अत्यंत आवश्यक हो गया है. उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण अब केवल औपचारिकता नहीं बल्कि जीवन रक्षा का माध्यम बन चुका है.

शंकर भगत ने विशेष रूप से घरेलू पक्षी गौरैया के संरक्षण पर बल देते हुए कहा कि यह पक्षी अब दुर्लभ होता जा रहा है. मानव समाज जिसे मूकदर्शक बनकर अपनी रक्षा का प्रतीक मानता रहा है, उसे आश्रय और सुरक्षा देना एक अत्यंत पुण्य कार्य है.

 

सारंडा की नदियों पर मंडरा रहा संकट
एशिया के सुप्रसिद्ध सारंडा जंगल में गर्मी का प्रकोप अभी से दिखने लगा है. इसके चलते क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ — कारो, कोयना और सरोखा (उर्फ सोना नदी) — सूखने की कगार पर हैं.
इन नदियों ने कभी अपने वेग और गहराई से लोगों को चौंकाया था, लेकिन आज वे पथरीले रास्तों और नालों में बदलती जा रही हैं.

 

जलचरों का विलुप्त होता संसार
कभी इन नदियों में दरीयाई घोड़े और मगरमच्छ विचरण करते थे. मछलियाँ यहाँ प्रचुर मात्रा में थीं. पर अब, जलधाराएँ सूख चुकी हैं. स्थानीय लोग मछलियाँ मारने के लिए विषैले जिलेटीन का उपयोग करते रहे हैं, जिससे जलजीवों की संख्या में भारी गिरावट आई है.

 

खान फाइन्स और मिट्टी ने छीन ली नदी की गहराई
शंकर भगत ने बताया कि खान क्षेत्रों से निकलने वाले फाइन्स, मिट्टी और पत्थरों ने इन नदियों की गहराई लगभग दो मीटर तक भर दी है. परिणामस्वरूप पानी का प्रवाह ठहर चुका है. आज इन नदियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी ने सड़क निर्माण से पहले गिट्टी और रेत से समतलीकरण कर दिया हो.

 

हजारों ग्रामीणों की जीवनरेखा बन चुकी नदियाँ आज स्वयं प्यास से तड़प रही हैं
इन नदियों का जल कभी आसपास के दर्जनों गांवों की प्यास बुझाता था. खेतों की सिंचाई होती थी. अब स्थिति यह है कि वे नदियाँ जो जीवनदायिनी थीं, स्वयं जल के लिए तरस रही हैं.

वन पदाधिकारी ने चेतावनी दी कि यदि शीघ्र ही सरकारी, सामाजिक और औद्योगिक स्तर पर ठोस प्रयास नहीं किए गए, तो आने वाले दिनों में सारंडा क्षेत्र में जल संकट के साथ-साथ जैव विविधता पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है.

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