
गया/राजगीर: कांग्रेस नेता राहुल गांधी शुक्रवार, 06 जून को एक दिवसीय दौरे पर बिहार पहुंचे. इस दौरान उन्होंने गया जिले के ऐतिहासिक गांव गेहलौर जाकर माउंटेन मैन दशरथ मांझी को श्रद्धांजलि अर्पित की और बाद में राजगीर में ‘संविधान सुरक्षा सम्मेलन’ को संबोधित किया. राहुल गांधी सुबह 10.30 बजे गयाजी पहुंचे. यहां से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित गेहलौर गांव जाकर उन्होंने माउंटेन मैन दशरथ मांझी की स्मृति में बने स्मारक पर माल्यार्पण किया.
इस अवसर पर राहुल गांधी ने दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी और उनके परिवार से मुलाकात की. उन्होंने घर पर बैठकर परिजनों के साथ संवाद किया और नारियल पानी पीया.
परिवार की बच्ची ने राहुल गांधी से कहा कि वह डीएम बनना चाहती है. राहुल ने मुस्कुराते हुए उसे प्रोत्साहित किया. इस दौरान भागीरथ मांझी की ओर से बोधगया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की इच्छा भी राहुल गांधी के समक्ष प्रकट की गई, जिसे उन्होंने ध्यानपूर्वक सुना और आश्वासन भी दिया.
संविधान सम्मेलन में राहुल गांधी का तीखा बयान
राजगीर में आयोजित ‘संविधान सुरक्षा सम्मेलन’ में राहुल गांधी ने वर्तमान राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी की. उन्होंने कहा,
“बिहार की पुरानी पहचान थी – सत्य, न्याय और अहिंसा. लेकिन आज की तारीख़ में इसे ‘क्राइम कैपिटल ऑफ इंडिया’ कहा जा रहा है.”
उन्होंने यह भी कहा कि बिहार की ऐतिहासिक भूमिका को भुला दिया गया है. “कभी यही बिहार विचारों का केन्द्र था, जहां से ज्ञान श्रीलंका, जापान और कोरिया तक जाता था. आज बिहार से लोग बाहर जाते हैं, क्योंकि यहां रोजगार नहीं है.”
क्या भारत में भागीदारी सभी की है?
राहुल गांधी ने कहा कि भारत में 90% आबादी की न तो नीति-निर्माण में भागीदारी है और न ही उद्योगों में प्रतिनिधित्व. उन्होंने कहा कि देश की 500 सबसे बड़ी कंपनियों में दलित, आदिवासी या पिछड़े वर्ग का कोई सीईओ नहीं है.
“आज सरकारी अस्पतालों की जगह प्राइवेट अस्पताल आ गए हैं. सरकार ज़मीन देती है, लेकिन उसमें किसका नाम है? आप लिस्ट निकालिए – डॉक्टरों की, अस्पताल मालिकों की – और बताइए कि उसमें कितने आदिवासी, दलित या पिछड़े हैं?”
राहुल का सवाल – कैसा विकास जो सबका नहीं?
राहुल गांधी के पूरे भाषण का सार यही रहा कि विकास अगर समावेशी नहीं है तो वह विकास नहीं, छलावा है. उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे न केवल सपने देखें, बल्कि उनके लिए संघर्ष भी करें – जैसा दशरथ मांझी ने किया था.
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