घाटशिला: घाटशिला उपचुनाव में विकास से जुड़ी अनदेखी अब प्रमुख मुद्दा बनती जा रही है। विपक्षी दल मुखर हैं, लेकिन आदिवासी समाज के एक बड़े वर्ग को इस चुनाव में प्रत्याशियों द्वारा संथाली भाषा के मुद्दे पर चुप्पी रहना काफी खल रहा है। आदिवासी बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता चाहते हैं कि सभी 14 प्रत्याशी संथाली भाषा को झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा दिलाने के मुद्दे को अपने चुनावी एजेंडे में शामिल करें।
असेंका के महासचिव शंकर सोरेन ने कहा कि संथाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है, लेकिन विश्वविद्यालय और महाविद्यालय में इसे क्षत्रिय भाषा समूह में रखा गया है, जबकि इसका अलग विभाग होना चाहिए। उन्होंने बताया कि ओलचिकी को 100 साल हो गए हैं, लेकिन झारखंड में यह अभी भी शत-प्रतिशत लागू नहीं हो पाई है।
सोरेन ने उम्मीदवारों से अपील की कि वे इस चुनाव में संथाली अकादमी के गठन और भाषा के अधिकारों को चुनावी मुद्दे के रूप में शामिल करें। उनका मानना है कि इससे आदिवासी समुदाय की भागीदारी बढ़ेगी और मतदान प्रतिशत भी अधिक होगा।
सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस उपचुनाव में संथाली भाषा का मुद्दा कितना असर डालता है और उम्मीदवार इसे अपने चुनावी एजेंडे में कितनी गंभीरता से अपनाते हैं। बहरहाल, आदिवासी समाज की मांग है कि भाषा के मुद्दे पर राजनीतिक नजरअंदाजी नहीं की जाए, और यह चुनावी मंच संथाली भाषा को मजबूत करने का अवसर बने।
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